________________ [ स्थानाङ्गसूत्र 3. प्राचार्य और उपाध्याय का अवर्णवाद करने से / 4. चतुर्विध संघ का अवर्णवाद करने से (570) / प्रव्रज्या-सूत्र ५७१-चउन्विहा पवज्जा पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगपडिबद्धा, परलोगपडिबद्धा, दुहनोलोगपडिबद्धा, अप्पडिबद्धा। प्रव्रज्या (निर्ग्रन्थ दीक्षा) चार प्रकार की कही गई है। जैसे१. इहलोकप्रतिबद्धा-इस लोक-सम्बन्धी सुख-कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या / 2. परलोकप्रतिबद्धा-परलोक-सम्बन्धी सुख-कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या / 3. लोकद्वयप्रतिबद्धा दोनों लोकों में सुख-कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या। 4. अप्रतिवद्धा-किसी भी प्रकार के सांसारिक सुख की कामना से रहित कर्म-विनाशार्थ ___ ली जाने वाली प्रव्रज्या (571) / ५७२----चउविवहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा-पुरोपडिबद्धा, मग्गोपडिबद्धा, दुहनोपडिबद्धा, अप्पडिबद्धा। पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है / जैसे१. पुरतः प्रतिबद्धा-प्रजित होने पर आहारादि अथवा शिष्यपरिवारादि की कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या।। 2. मार्गतः (पृष्ठत:) प्रतिबद्धा—मेरी प्रव्रज्या से मेरे वंश, कुल और कुटुम्बादि को प्रतिष्ठा बढ़ेगी / इस कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या / 3. द्वयप्रतिबद्धा-पुरतः और पृष्ठत: उक्त इन दोनों प्रकार की कामना से ली जाने वाली प्रव्रज्या / 4. अप्रतिबद्धा-उक्त दोनों प्रकार की कामनाओं से रहित कर्मक्षयार्थ ली जाने वाली प्रवज्या (572) / ५७३-चउबिहा पव्वज्जा पण्णता, तं जहा--प्रोवायपव्वज्जा, अक्खातपन्वज्जा, संगारपव्वज्जा, विहगगइपव्वज्जा। पुनः प्रव्रज्या चार प्रकार की कही गई है। जैसे१. अवपात प्रव्रज्या---सद्-गुरुओं की सेवा से प्राप्त होने वाली दीक्षा / 2. आख्यात प्रव्रज्या-दूसरों के कहने से ली जाने वाली दीक्षा / 3. संगर प्रव्रज्या-तुम दीक्षा लोगे तो मैं भी दीक्षा लूगा, इस प्रकार परस्पर प्रतिज्ञाबद्ध होने से ली जाने वाली दीक्षा। 4. विहगगति प्रव्रज्या-परिवारादि से अलग होकर और एकाकी देशान्तर में जाकर ली जाने वाली दीक्षा (573) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org