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________________ [ 366 चतुर्थ स्थान-चतुर्थ उद्देश ] ५३४–चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा--गज्जित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे णो गज्जित्ता णो विज्जुयाइत्ता / एवामेव चत्तारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—गज्जित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जितावि विज्जुयाइत्तावि, एगे णो गज्जित्ता णो विज्जुयाइत्ता। पुनः मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं जैसे१. गर्जक, न विद्योतक-कोई मेघ गरजता है, किन्तु विद्युत्कर्ता नहीं-चमकता नहीं है / 2. विद्योतक, न गर्जक-कोई मेघ चमकता है, किन्तु गरजता नहीं है। 3. गर्जक भी, विद्योतक भी-कोई मेघ गरजता भी है और चमकता भी है। 4. न गर्जक, न विद्योतक-कोई मेघ न गरजता ही है और न चमकता ही है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. गर्जक, न विद्योतक कोई पुरुष दानादि करने की गर्जना (घोषणा) तो करता है, किन्तु चमकता नहीं अर्थात् उसे देता नहीं है / 2. विद्योतक, न गर्जक-कोई पुरुष दानादि देकर चमकता तो है, किन्तु उसकी गर्जना या घोषणा नहीं करता। 3. गर्जक भी, विद्योतक भी-कोई पुरुष दानादि की गर्जना भी करता है और देकर के चमकता भी है। 4. न गर्जक, न विद्योतक--कोई पुरुष न दानादि की गर्जना ही करता है और न देकर के चमकता ही है / (534) ५३५-चत्तारि मेहा पण्णत्ता, त जहा-वासित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो वासित्ता, एगे वासित्तावि विज्जयाइत्तावि, एगे णो वासित्ता णो विज्जयाइत्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वासित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो वासित्ता, एगे वासित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे णो वासित्ता णो विज्जुयाइत्ता। पुन: मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. वर्षक, न विद्योतक-कोई मेघ बरसता है, किन्तु चमकता नहीं है। 2. विद्योतक, न वर्षक-कोई मेघ चमकता है, किन्तु बरसता नहीं है। 3. वर्षक भी, विद्योतक भी-कोई मेघ बरसता भी है और चमकता भी है / 4. न वर्षक, न विद्योतक-कोई मेघ न बरसता है और न चमकता ही है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. वर्षक, न विद्योतक-कोई पुरुष दानादि देता तो है, किन्तु दिखावा कर चमकता नहीं है। 2. विद्योतक, न वर्षक-कोई पुरुष दानादि देने का प्राडम्बर या प्रदर्शन कर चमकता तो है, किन्तु बरसता (देता) नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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