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________________ 368 ] [ स्थानाङ्गसूत्र विवेचन संस्कृत टीकाकार ने 'समवसरण' की निरुक्ति इस प्रकार से की है—'वादिनःतीथिका: समवसरन्ति-अवतरन्ति येषु इति समवसरणानि' अर्थात् जिस स्थान पर सर्व ओर से प्राकर वादी जन या विभिन्नमत वाले मिलें एकत्र हों, उस स्थान को समवसरण कहते हैं। भगवान् महावीर के समय में सत्रोक्त चारों प्रकार के वादियों के समवसरण थे और उनके भी अनेक उत्तर भेद थे, जिनकी संख्या एक प्राचीन गाथा को उद्धृत करके इस प्रकार बतलाई गई है 1. क्रियावादियों के 180 उत्तरभेद, 2. अक्रियावदियों के 84 उत्तरभेद, 3 अज्ञान वादियों के 67 उत्तरभेद, 4. विनयवादियों के 32 उत्तरभेद / इस प्रकार (180 +84+67+ 32-363) तीन सौ तिरेसठ वादियों के भ० महावीर के समय में होने का उल्लेख श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय के शास्त्रों में पाया जाता है / ___ यहां यह बात खास तौर से विचारणीय है कि सूत्र 531 में नारकों के और सूत्र 532 में विकलेन्द्रियों को छोड़कर शेष दण्डक वाले जीवों के उक्त चारों समवसरणों का उल्लेख किया गया है / इसका कारण यह है कि विकलेन्द्रिय जीव असंज्ञी होते हैं, अतः उनमें ये चारों भेद नहीं घटित हो सकते, किन्तु नारक आदि संज्ञी हैं, अत: उनमें यह चारों विकल्प घटित हो सकते हैं। मेघ-सूत्र ५३३-चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा---गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्ताबि वासित्तावि, एगे णो गज्जित्ता णो वासित्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि वासित्तावि, एगे जो मज्जित्ता णो वासित्ता। मेघ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. गर्जक, न वर्षक-कोई मेघ गरजता है, किन्तु बरसता नहीं है। 2. वर्षक, न गर्जक--कोई मेघ बरसता है, किन्तु गरजता नहीं है। 3. गर्जक भी, वर्षक भी -कोई मेघ गरजता भी है और बरसता भी है। 4. न गर्जक, न वर्षक-कोई मेघ न गरजता है और न बरसता ही है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. गर्जक, न वर्षक-कोई पुरुष गरजता है, किन्तु बरसता नहीं / अर्थात् बड़े-बड़े कामों को करने की उद्घोषणा करता है, किन्तु उन कामों को करता नहीं है। 2. वर्षक, न गर्जक-कोई पुरुष कार्यों का सम्पादन करता है किन्तु उद्घोषणा नहीं करता, गरजता नहीं है। 3. गर्जक भी, वर्षक भी—कोई पुरुष कार्यों को करने की गर्जना भी करता है और उन्हें __ सम्पादन भी करता है। 4. न गर्जक, न वर्षक–कोई पुरुष कार्यों को करने की न गर्जना ही करता है और न कार्यों को करता ही है (533) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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