________________ 364] [ स्थानाङ्गसूत्र इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. अन्तःशल्य, न बहिःशल्य-कोई पुरुष भीतरी शल्यवाला होता है, बाहरी शल्य वाला नहीं। 2. बहिःशल्य, न अन्तःशल्य--कोई पुरुष बाहरी शल्यवाला होता है, भीतरी शल्यवाला नहीं। 3. अन्तःशल्य भी, बहिःशल्य भी कोई पुरुष भीतरी शल्यवाला भी होता है और बाहरी शल्यवाला भी होता है। 4. न अन्तः शल्य, न बहिःशल्य--कोई पुरुष न भीतरी शल्यवाला होता है और न बाहरी शल्य वाला ही होता है (521) / ५२२--चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा--अंतो? णाममेगे णो बाहिंदु?, बाहिंदु? णाममेगे णो अंतोदुट्टे, एगे अंतोदु? बि बाहिंदुह्रवि, एगे जो अंतोदुट्ठ णो बाहिदुट्ठ। एवमेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अंतोदुट्ठ णाममेगे णो बाहिंदुट्ठ, बाहिंदुट्टे णाममेगे जो अंतोदुट्ठ, एगे अंतोदु? वि बाहिंदुट्ठ वि, एगे णो अंतोदुढे णो बाहिंदुह्र / पुनः व्रण चार प्रकार के कहे गये हैं 1 जैसे१. अन्तर्दुष्ट, न बहिर्दुष्ट-कोई व्रण भीतर से दुष्ट (विकृत) होता है, बाहर से दुष्ट नहीं होता। 2. बहिर्दुष्ट, न अन्तर्दुष्ट-कोई व्रण बाहर से दुष्ट होता है, भीतर से दुष्ट नहीं होता। 3. अन्तर्दुष्ट भी, बहिष्ट भी-कोई व्रण भीतर से भी दुष्ट होता है और बाहर से भी दुष्ट होता है। 4. न अन्तर्दुष्ट, न बहिर्दुष्ट--कोई व्रण न भीतर से दुष्ट होता है और न बाहर से ही ___दुष्ट होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. अन्तर्दुष्ट, न बहिर्दुष्ट-कोई पुरुष अन्दर से दुष्ट होता है, बाहर से दुष्ट नहीं होता। 2. बहिर्दष्ट, न अन्तर्दष्ट-कोई पुरुष बाहर से दुष्ट होता है, भीतर से दुष्ट नहीं होता 3. अन्तर्दुष्ट भी, बहिर्दुष्ट भी--कोई पुरुष अन्दर से भी दुष्ट होता है और बाहर से भी दुष्ट होता है। 4. न अन्त'ष्ट, न बहिर्दुष्ट---कोई पुरुष न अन्दर से दुष्ट होता है और न बाहर से दुष्ट होता है (522) / श्रेयस-पापीयस्-सूत्र ५२३-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा सेयंसे णाममेगे सेयंसे, सेयंसे णाममेगे पावंसे, पावसे णाममेगे सेयंसे, पावसे णाममेगे पावंसे / चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। जैसे१. श्रेयान् और श्रयान्-कोई पुरुष सद्-ज्ञान की अपेक्षा श्रेयान्-(प्रति प्रशंसनीय) होता है और सदाचार की अपेक्षा भी श्रेयान् होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org