________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [387 3. प्रतिनिभ-उपन्यासोपनय–वादी के द्वारा दिये गये हेतु के समान ही दूसरा हेतु प्रयोग कर उसके हेतु को प्रसिद्ध करना प्रतिनिभ-उपन्यासोपनय है। 4. हेतु-उपन्यासोपनय हेतु का उपन्यास करके अन्य के प्रश्न का समाधान करना हेतुउपन्यासोपनय है / जैसे-किसी ने पूछा-तुम क्यों दीक्षा ले रहे हो ? उसने उत्तर दिया-क्योंकि विना उसके मोक्ष नहीं मिलता है। हेतु-सूत्र ५०४-हेऊ च उम्बिहे पण्णत्त, तं जहा-जावए, थावए, वंसए, लूसए / अहवा-हेऊ चउबिहे पण्णत्त, तं जहा-पच्चक्खे, अणुमाणे, प्रोवम्मे, प्रागमे / अहवा-हेऊ चउम्विहे पण्णत्त, तं जहा--अस्थित्त अस्थि सो हेऊ, अस्थित्त त्थि सो हेऊ, णस्थित अस्थि सो हेऊ, णस्थित णस्थि सो हेऊ। हेत (साध्य का साधक साधन-वचन) चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. यापक हेतु-जिसे प्रतिवादी शीघ्र न समझ सके ऐसा समय बिताने वाला विशेषण बहुल हेतु। 2. स्थापक हेतु-साध्य को शीघ्र स्थापित (सिद्ध) करने वाली व्याप्ति से युक्त हेतु / 3. व्यंसक हेतु--प्रतिवादी को छल में डालनेवाला हेतु / 4. लूषक हेतु-व्यंसक हेतु के द्वारा प्राप्त आपत्ति को दूर करने वाला हेतु / अथवा-हेतु चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान 3. औपम्य, 4. पागम / अथवा हेतु चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. 'अस्तित्व है' इस प्रकार से विधि-साधक विधि-हेतु / 2. 'अस्तित्व नहीं है' इस प्रकार से विधि-साधक निषेध-हेत / 3. 'नास्तित्व है' इस प्रकार से निषेध-साधक विधि-हेतु / 4. 'नास्तित्व नहीं है' इस प्रकार से निषेध-साधक निषेध-हेतु (504) / विवेचन-साध्य की सिद्धि करने वाले वचन को हेतु कहते हैं। उसके जो यापक आदि चार भेद बताये गये हैं, उनका प्रयोग वादि-प्रतिवादी शास्त्रार्थ के समय करते हैं। 'अथवा कह कर' जो प्रत्यक्ष प्रादि चार भेद कहे हैं, वे वस्तुतः प्रमाण के भेद हैं और हेतु उन चार में से अनुमानप्रमाण का अंग है। वस्तु का यथार्थ बोध कराने में कारण होने से शेष प्रत्यक्षादि तीन प्रमाणों को भी हेतु रूप से कह दिया गया है। हेतु के वास्तव में दो भेद हैं-विधि-रूप और निषेध-रूप / विधि-रूप को उपलब्धि-हेतु और निषेध-रूप को अनुपलब्धि-हेतु कहते हैं। इन दोनों के भी अविरुद्ध और विरुद्ध की अपेक्षा दो-दो भेद होते हैं / जैसे 1. विधि-साधक-उपलब्धि हेतु / 2. निषेध-साधक-उपलब्धि हेतु / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org