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________________ चतुथ स्थान-तृतीय उद्देश ] [385 3. प्रतिनिभ-उपन्यासोपनय-वादी-द्वारा प्रयुक्त हेतु के सदृश दूसरा हेतु प्रयोग करके उसके हेतु को प्रसिद्ध करना। 4. हेतु-उपन्यासोपनय-हेतु बता कर अन्य के प्रश्न का समाधान कर देना (503) / विवेचन-संस्कृत टीका में 'ज्ञात' पद के चार अर्थ किये हैं-- 1. दृष्टान्त, 2. आख्यानक, 3. उपमान मात्र और 4. उपपत्ति मात्र / 1. दृष्टान्त न्यायशास्त्र के अनुसार साधन का सद्भाव होने पर साध्य का नियम से सद्भाव और साध्य के अभाव में साधन का नियम से अभाव जहां दिखाया जावे, उसे दृष्टान्त कहते हैं। जैसे धूम देखकर अग्नि का सद्भाव बताने के लिए रसोईघर को बताना, अर्थात् जहां धूम होता है वहां अग्नि होती है, जैसे रसोईघर / यहां रसोईघर दृष्टान्त है। ___ आख्यानक का अर्थ कथानक है। यह दो प्रकार का होता है-चरित और कल्पित / निदान का दुष्फल बताने के लिए ब्रह्मदत्त का दृष्टान्त देना चरित-पाख्यानक है। कल्पना के द्वारा किसी तथ्य को प्रकट करना कल्पित आख्यानक है / जैसे—पीपल के पके पत्ते को गिरता देखकर नव किसलय हंसा, उसे हंसता देखकर पका पत्ता बोला-एक दिन तुम्हारा भी यही हाल होगा। यह दृष्टान्त यद्यपि कल्पित है, तो भी शरीरादि की अनित्यता का बोधक है। सूत्राङ्क 466 में ज्ञात के चार भेद बताये गये हैं / उनका विवरण इस प्रकार है--- 1. आहरण-ज्ञात–अप्रतीत अर्थ को प्रतीत कराने वाला दृष्टान्त हरण-ज्ञात कहलाता है / जैसे-पाप दुःख देने वाला होता है, ब्रह्मदत्त के समान / / 2. आहरणतद्देश-ज्ञात-दृष्टान्तार्थ के एक देश से दार्टान्तिक अर्थ का कहना, जैसे'इसका मुख चन्द्र जैसा है' यहाँ चन्द्र की सौम्यता और कान्ति मात्र ही विवक्षित है, चन्द्र का कलंक आदि नहीं / अतः यह एकदेशीय दृष्टान्त है। 3. पाहरणतद्दोष-ज्ञात-उदाहरण के साध्यविकल प्रादि दोषों से युक्त दृष्टान्त को आहरणतदोष ज्ञात कहते हैं। जैसे-शब्द नित्य है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे घट / यह दृष्टान्त -साधन-विकलता दोष से युक्त है, क्योंकि घटः मनुष्य के द्वारा बनाया जाता है, इसलिए वह नित्य नहीं है और रूपादि से युक्त है अतः अमूर्त भी नहीं है। 4. उपन्यासोपनय ज्ञात-वादी अपने अभीष्ट मत को सिद्धि के लिए दृष्टान्त का उपन्यास करता है-~-प्रात्मा अकर्ता है, क्योंकि वह अमूर्त है / जैसे-आकाश / प्रतिवादी उसका खण्डन करने के लिए कहता है यदि आत्मा आकाश के समान अकर्ता है तो वह आकाश के समान अभोक्ता भी होना चाहिए। ज्ञात के प्रथम भेद आहरण के भी सूत्राङ्क 500 में चार भेद बताये गये हैं। उनका विवरण इस प्रकार है 1. अपाय-माहरण हेयधर्म के ज्ञान कराने वाले दृष्टान्त को अपाय-पाहरण कहते हैं / टीकाकार ने इसके भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा चार भेद करके कथानकों द्वारा उनका विस्तृत वर्णन किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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