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________________ 378] [ स्थानाङ्गसूत्र 4. सर्वार्थसिद्ध महाविमान-पंच अनुत्तर विमानों में मध्यवर्ती विमान / ये चारों ही एक लाख योजन विस्तार वाले हैं (481) / ४८२-चत्तारि लोगे समा सपविख सपडिदिसि पण्णता, तं जहा–सीमंतए गरए, समयक्खेत्ते, उडुविमाणे, इसोपभारा पुढवी। लोक में चार सम (समान विस्तारवाले), सपक्ष (समान पाववाले), और सप्रतिदिश (समान दिशा और विदिशा वाले) कहे गये हैं / जैसे---- 1. सीमन्तक नरक—पहले नरक का मध्यवर्ती प्रथम नारकावास / 2. समयक्षेत्र-काल के व्यवहार से संयुक्त मनुष्य क्षेत्र अढाई द्वीप / 3. उडुविमान-सौधर्म कल्प के प्रथम प्रस्तट का मध्यवर्ती विमान / 4. ईषत्प्राग्भार-पृथ्वी-लोक के अग्रभाग पर अवस्थित भूमि, (सिद्धालय-जहाँ पर सिद्ध जीव निवास करते हैं।) ये चारों ही पैंतालीस लाख योजन विस्तार वाले हैं। विवेचन-दिगम्बर शास्त्रों में ईषत्प्राग्भार पृथ्वी को एक रज्जू चौड़ी, सात रज्जू लम्बी और आठ योजन मोटी कहा गया है। हां, उसके मध्य में स्थित छत्राकार गोल और मनुष्य-क्षेत्र के समान पैतालीस लाख योजन विस्तार वाला, सिद्धक्षेत्र बताया गया है, जहाँ पर कि सिद्ध जीव अनन्त सुख भोगते हुए रहते हैं। द्विशरीर-सूत्र ४८३-उडुलोगे णं चत्तारि बिसरीरा पण्णत्ता, त जहा---पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा। ऊर्ध्वलोक में चार द्विशरीरी (दो शरीर वाले) कहे गये हैं / जैसे१. पृथ्वीकायिक, 2. अप्कायिक, 3. वनस्पतिकायिक, 4. उदार त्रस प्राणी (483) / ४८४--अहोलोगे णं चत्तारि बिसरोरा पण्णता, तं जहा-एवं चेव, (पुढविकाइया, प्राउकाइया, वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा / अधोलोक में चार द्विशरीरी कहे गये हैं। जैसे 1. पृथ्वीकायिक, 2. अप्कायिक, 3. वनस्पतिकायिक 4. उदार त्रस प्राणी (484) / 1. तिहुवण मुड्ढारूढा ईसिपभारा धरट्ठमी रुदा / दिग्घा इगि सगरज्जू अडजोयणपमिद बाहल्ला // 556 / / तम्मझे रुप्पमयं छत्तायार मणस्समर्माहवासं / सिद्धक्खेत्तं मझडवेहं कमहीण वेहुलयं // 557 / / उत्ताणट्ठियमते पत्त व तणु तदुरि तणूवादे / अट्ठगणडुढा सिद्धा चिट्ठति अणंतसुहतित्ता // 558 // -विलोकसार, वैमानिक लोकाधिकार / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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