________________ 332] [ स्थानाङ्गसूत्र ३८६-[चत्तारि गया पण्णता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे. जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे। __ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे / पुनः हाथी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. युक्त और युक्तरूप---कोई हाथी युक्त होकर युक्तरूप वाला होता है। 2. युक्त और अयुक्तरूप - कोई हाथी युक्त होकर भी अयुक्तरूप वाला होता है / 3. अयुक्त और युक्तरूप--कोई हाथी अयुक्त होकर भी युक्त रूप वाला होता है। 4. अयुक्त और अयुक्तरूप-कोई हाथी अयुक्त होकर अयुक्तरूप वाला होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे--- 1. युक्त और युक्तरूप--कोई पुरुष युक्त होकर युक्तरूप वाला होता है। 2. युक्त और अयुक्तरूप---कोई पुरुष युक्त होकर भी अयुक्तरूप वाला होता है। 3. अयुक्त और युक्तरूप--कोई पुरुष प्रयुक्त होकर भी युक्तरूप वाला होता है। 4. अयुक्त और अयुक्तरूप--कोई पुरुष प्रयुक्त होकर अयुक्तरूप वाला होता है (386) / ३८७-[चत्तारि गया पण्णत्ता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुअसोभे, अजुत्ते णाममेगे प्रजुत्तसोभे।। * एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसो भे, जत्ते णाममेगे प्रजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोमे] / पुनः हाथी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. युक्त और युक्तशोभ---कोई हाथी युक्त होकर युक्त शोभा वाला होता है / 2. युक्त और अयुक्तशोभ--कोई हाथी युक्त होकर भी अयुक्तशोभा वाला होता है / 1. अयुक्त और युक्तशोभ--कोई हाथी प्रयुक्त होकर भी युक्तशोभा वाला होता है / 4. अयुक्त और अयुक्तशोभ---कोई हाथी अयुक्त होकर अयुक्तशोभा वाला होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. युक्त और युक्तशोभ--कोई पुरुष युक्त होकर युक्तशोभा वाला होता है / 2. युक्त और अयुक्तशोभ--कोई पुरुष युक्त होकर भी अयुक्नशोभा वाला होता है। 3. अयुक्त और युक्तशोभ--कोई पुरुष प्रयुक्त होकर भी युक्तशोभा वाला होता है / 4. अयुक्त और अयुक्तशोभ-कोई पुरुष प्रयुक्त होकर अयुक्तशोभा वाला होता है (387) / पथ-उत्पथ-सूत्र ३८५-चत्तारि जग्गारिता पण्णत्ता, तजहा—पंथजाई णाममेगे णो उप्पहजाई, उप्पहजाई णाममेगे णो पंथजाई, एगे पंजाईवि उप्पहजाईवि, एगे णो पंथजाई णो उप्पहजाई / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-पंथजाई णामोंगे जो उपहजाई, उप्पहजाई णाममेगे णो पंथजाई, एगे पंथजाईवि उत्पहजाईवि, एगे णो पंथजाई णो उप्पहजाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org