________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 323 उच्च-नीच-सूत्र ३६८-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा–उच्चे णाममेगे उच्चच्छंदे, उच्चे णाममेगे णीयच्छंदे, णीए णाममेगे उच्चच्छंदे, णीए णाममेगे णीयच्छंदे / पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. उच्च और उच्चच्छन्द-कोई पुरुष कुल, वैभव आदि से उच्च होता है और उच्च विस्तार, उदारता आदि से भी उच्च होता है / 2. उच्च, किन्तु नीचच्छन्द---कोई पुरुष कुल, वैभव आदि से उच्च होता है, किन्तु नीच विचार, कृपणता आदि से नीच होता है। 3. नीच, किन्तु उच्चच्छन्द-कोई पुरुष जाति-कुलादि से नीच होता है, किन्तु उच्च विचार, उदारता आदि से उच्च होता है। 4. नीच और नीचच्छन्द-कोई पुरुष जाति-कुलादि से भी नीच होता है और विचार, कृपणता आदि से भी नीच होता है (368) / लेश्या-सूत्र __ ३६६-असुरकुमाराणं चत्तारि लेसाओ पण्णत्तानो, तजहा-कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा / असुरकुमारों में चार लेश्याएं कही गई हैं / जैसे१. कृष्णलेश्या, 2. नीललेश्या, 3. कापोतलेश्या, 4. तेजोलेश्या (366) / ३७०–एवं जाव थणियकुमाराणं / एवं-पुढविकाइयाणं प्राउ-वणस्सइकाइयाणं वाणमंतराणं-सन्वेसि जहा असुरकुमाराणं / इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों के, इसी प्रकार पृथिवीकायिक, अपकायिक, वनस्पतिकायिक जीवों के और वानव्यन्तर देवों के, इन सब के असुरकुमारों के समान चार-चार लेश्याएं होती हैं (370) / युक्त-अयुक्त-सत्र ३७१–चत्तारि जाणा पण्णत्ता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तजहा—जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते गाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते / यान चार प्रकार के होते हैं / जैसे१. युक्त और युक्त कोई यान (सवारी का वाहन गाड़ी आदि) युक्त (बैल आदि से संयुक्त) __ और युक्त (वस्त्रादि से सुसज्जित) होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org