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________________ 312] [स्थानाङ्गसूत्र रतिकरगपध्वए, दाहिणपच्चथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, उत्तरपच्चस्थिमिले रतिकरगपव्वए। ते णं रतिकरगपव्वता दस जोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं, दस गाउयसताई उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा झल्लरिसंठाणसंठिता; दस जोयणसहस्साई विक्ख मेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं; सव्वरयणामया प्रच्छा जाव पडिरूवा / नन्दीश्वरवर द्वीप के चक्रवाल विष्कम्भ के बहुमध्यदेश भाग में चारों विदिशाओं में चार रतिकर पर्वत हैं / जैसे / 1. उत्तर-पूर्व दिशा का रतिकर पर्वत / 2. दक्षिण-पूर्वदिशा का रतिकर पर्वत / 3. दक्षिणपश्चिमदिशा का रतिकर पर्वत / 4. उत्तर पश्चिम दिशा का रतिकर पर्वत। वे रतिकर पर्वत एक हजार योजन ऊंचे और एक हजार कोस गहरे हैं। ऊपर, मध्य और अधोभाग में सर्वत्र समान विस्तार वाले हैं। वे झालर के आकार से अवस्थित हैं, अर्थात् गोलाकार हैं। उनका विस्तार दश हजार योजन और परिधि इकतीस हजार छह सौ तेईस (31623) योजन है। वे सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् रमणीय हैं (344) / ३४५–तत्थ णं जे से उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपन्वते, तस्स णं चउदिसि ईसाणस्स देविदस्स देवरको चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवपमाणाप्रो चत्तारि रायहाणोप्रो पण्णत्तानो, त जहाणंदुत्तरा, णंदा, उत्तरकुरा, देवकुरा / कण्हाए, कण्हराईए, रामाए, रामरक्खियाए / उन चार रतिकरों में जो उत्तर-पूर्व दिशा का रतिकर पर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में देवराज ईशान देवेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप प्रमाण वाली—एक लाख योजन विस्तृत चार राजधानियां कही गई हैं / जैसे 1. कृष्णा अग्नमहिषी की राजधानी नन्दोत्तरा। 2. कृष्णराजिका अग्रमहिषी की राजधानी नन्दा। 3. रामा अग्रमहिषी की राजधानी उत्तरकुरा / 4. रामरक्षिता अग्रमहिषी को राजधानी देवकुरा (345) / ३४६-तत्थ णं जे से दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरगपटवते, तस्स णं चउदिसि सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गम हिसीणं जंबुद्दोवपमाणाप्रो चत्तारि रायहाणीनो पण्णत्तानो, तं जहासमणा, सोमणसा, प्रच्चिमाली, मणोरमा / पउमाए, सिवाए, सतीए, अंजए। उन चारों रतिकरों में जो दक्षिण-पूर्व दिशा का रतिकर पर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में देवराज शक्र देवेन्द्र की चार अनमहिषियों की जम्बूद्वीप प्रमाणवाली चार राजधानियां कही गई हैं। जैसे-- 1. पद्मा अग्रमहिषी की राजधानी समना। 2. शिवा अनमहिषी की राजधानी सौमनसा / 3. शची अग्रमहिषी की राजधानी अचिमालिनी / 4. अंजू अग्रमहिषी की राजधानी मनोरमा (346) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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