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________________ 262] [ स्थानाङ्गसूत्र 4. अवलेखनिका के समान माया में प्रवर्तमान जीव काल करता है तो देवों में उत्पन्न होता है (282) / मान-सूत्र २८३—चत्तारि थंभा पाण्णता, त जहा-सेलथ भे, अष्ट्रिय भे, दारुथंभे, तिणिसलताथंभे / एवामेव चउन्विधे माणं पण्णते, त जहा-सेलथंभसमाणे, जाव (अद्विथंभसमाणे, दारुथंभसमाणे), तिणिसलतार्थभसमाणे। 1. सेलर्थभसमाणं माणं अणुपविट्ठ जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति / 2. एवं जाव (अट्टिथंभसमाणं माणं अणुपविटु कालं करेति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति / 3. दारुथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठ जोवे कालं करेति, मणुस्सेसु उववज्जति)। 4. तिणिसलतार्थभसमाणं माणं अणुपविट्ट जीवे कालं करेति, देवेसु उववज्जति / स्तम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे---- 1. शैलस्तम्भ-पत्थर का खम्भा। 2. अस्थिस्तम्भ -हाड का खम्भा / 3. दारुस्तम्भ-काठ का खम्भा। 4. तिनिशलतास्तम्भ-वेत का स्तम्भ / इसी प्रकार मान भी चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. शैलस्तम्भ समान–पत्थर के खम्भे के समान अत्यन्त कठोर अनन्तानुबन्धी मान / 2. अस्थिस्तम्भ समान-हाड़ के खम्भे के समान कठोर अप्रत्याख्यानावरण मान / 3. दारुस्तम्भ समान-काठ के खम्भे के समान अल्प कठोर प्रत्याख्यानावरण मान / 4. तिनिशलतास्तम्भ समान-वेंत के खम्भे के समान स्वल्प कठोर संज्वलन मान / 1. शैलस्तम्भ के समान मान में प्रवर्तमान जीव काल करता है तो नारकियों में उत्पन्न होता है। 2. अस्थिस्तम्भ के समान मान में प्रवर्तमान जीव काल करता है तो तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है। 3. दारुस्तम्भ के समान मान में प्रवर्तमान जीव काल करता है तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है। 4. तिनिशलतास्तम्भ के समान मान में प्रवर्तमान जीव काल करता है तो देवों में उत्पन्न होता है (283) / लोभ-सूत्र २८४-चत्तारि वत्था पण्णत्ता, त जहा—किमिरागरत्ते, कद्दमरागरत्ते, खंजणरागरते, हलिद्दरागरत्ते। एवामेव चउन्विधे लोभे पण्णत्ते, त जहा-किमिरागरत्तवस्थसमाणे, कद्दमरागरत्तवत्थसमाणे, खंजणरागरत्तवत्थसमाणे, हलिद्दरागरत्तवत्थसमाणे / 1. किमिरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविटु जोवे कालं करेइ, रइएस उववज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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