________________ 284] [ स्थानाङ्गसूत्र एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-उज्जू णाममे गे उज्जू, उज्जू गाममे गे वंके, वंके णाममग उज्ज, वंके णामम गे वंके / मार्ग चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. ऋजु और ऋजु---कोई मार्ग ऋजु (सरल) दिखता है और सरल ही होता है। 2. ऋजु और वक्र-कोई मार्ग ऋजु दिखता है, किन्तु वक्र होता है / 3. वक्र और ऋजु–कोई मार्ग वक्र दिखता है, किन्तु ऋजु होता है / 4. वक्र और वक्र—कोई मार्ग वक्र दिखता है और वक्र ही होता है। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. ऋजु और ऋजु-कोई पुरुष सरल दिखता है और सरल ही होता है। 2. ऋजु और वक्र—कोई पुरुष सरल दिखता है किन्तु कुटिल होता है / 3. वक्र और ऋजु– कोई पुरुष कुटिल दिखता है, किन्तु सरल होता है। 4. वक्र और वक्र—कोई पुरुष कुटिल दिखता है और कुटिल होता है (266) / विवेचन-ऋज का अर्थ सरल या सीधा और वक्र का अर्थ कुटिल है। कोई मार्ग प्रादि में सीधा और अन्त में भी सीधा होता है, इस प्रकार से मार्ग के शेष भंगों को भी जानना चाहिए / पुरुष पक्ष में संस्कृत टीकाकार ने दो प्रकार से अर्थ किया है / जैसे--- (1) प्रथम प्रकार-१. कोई पुरुष प्रारम्भ में ऋजु प्रतीत होता है और अन्त में भी ऋजु निकलता है, इस प्रकार से शेष भंगों का भी अर्थ करना चाहिए। (2) द्वितीय प्रकार-१. कोई परुष ऊपर से ऋजु दिखता है और भीतर से भी ऋजु होता है / इस प्रकार से शेष भंगों का अर्थ करना चाहिए। क्षेम-अक्षेम-सूत्र __ २६७–चत्तारि मग्गा पण्णता, तं जहा-खेम णाममगे खेम, खेम गाममे गे अखेम', अखेम णामम गे खेस, अखेम णाममग अखेम। एवाम व चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-खेमे णाममगे खेम', खेमे णाममंगे अखेम, अखेमे णाममगे खेमे, अखेमें णाममग अखेमे / पुनः मार्ग चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे 1. क्षेम और क्षेम-कौई मार्ग आदि में भी क्षेम (निरुपद्रव) होता है और अन्त में भी क्षेम होता है। 2. क्षेम और अक्षेम-कोई मार्ग आदि में क्षेम, किन्तु अन्त में प्रक्षेम (उपद्रव वाला) होता 3. अक्षेम और क्षेम-कोई मार्ग आदि में प्रक्षेम, किन्तु अन्त में क्षेम होता है। 4. अक्षेम और अक्षेम-कोई मार्ग प्रादि में भी अक्षेम और अन्त में भी अक्षम होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org