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________________ 276 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 4. परलोक के दुश्चीर्ण कर्म परलोक में ही दुःखमय फल को देने वाले होते हैं, इस प्रकार ___ की प्ररूपणा करना। 1. इस लोक के सुचीर्ण कर्म इसी लोक में सुखमय फल को देने वाले होते हैं। 2. इस लोक के सुचीर्ण कर्म परलोक में सुखमय फल को देने वाले होते हैं / 3. परलोक के सुचीर्ण कर्म इस लोक में सुखमय फल को देने वाले होते हैं / 4. परलोक के सुचौर्ण कर्म परलोक में सुखमय फल को देने वाले होते हैं (250) / विवेचन–निर्वेदनी कथा का दो प्रकार से निरूपण किया गया है। प्रथम प्रकार में पाप कर्मों के फल भोगने के चार प्रकार बताये गये हैं। उनका अभिप्राय इस प्रकार है-१. चोर आदि इसी जन्म में चोरी प्रादि करके इसी जन्म में कारागार आदि की सजा भोगते हैं। 2. कितने ही शिकारी आदि इस जन्म में पाप बन्धकर परलोक में नरकादि के दुःख भोगते हैं / 3. कितने ही प्राणी पूर्वभवोपाजित पाप कर्मों का दुष्फल इस जन्म में गर्भ काल से लेकर मरण तक दारिद्रय, व्याधि आदि के रूप में भोगते हैं। 4. पूर्वभव में उपार्जन किये गये अशुभ कर्मों से उत्पन्न काक, गिद्ध आदि जीव मांस-भक्षणादि करके पाप कर्मों को बांधकर नरकादि में दुःख भोगते हैं। द्वितीय प्रकार में पुण्य कर्म का फल भोगने के चार प्रकार बताये गये हैं। उनका खुलासा इस प्रकार है--१. तीर्थकरों को दान देने वाला दाता इसी भव में सातिशय पुण्य का उपार्जन कर स्वर्णवृष्टि आदि पंच आश्चर्यों को प्राप्त कर पुण्य का फल भोगता है। 2. साधु इस लोक में संयम की साधना के साथ-साथ पुण्य कर्म को बांधकर परभव में स्वर्गादि के सुख भोगता है। 3. परभव में उपाजित पुण्य के फल को तीर्थंकरादि इस भव में भोगते हैं। 4. पूर्व भव में उपाजित पुण्य कर्म के फल से देव भव में स्थित तीर्थकरादि अग्रिम भव में तीर्थंकरादि रूप से उत्पन्न होकर भोगते हैं। ___ इस प्रकार से पाप और पुण्य के फल प्रकाशित करने वाली निर्वेदनी कथा के दो प्रकारों से निरूपण का प्राशय जानना चाहिए। कृश-दृढ़-सूत्र २५१-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा—किसे णाममेगे किसे, किसे णाममेग दढे, दढे णाममेग किसे, दहें णाममेग दढे / पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कृश और कृश--कोई पुरुष शरीर से भी कृश होता है और मनोवल से भी कृश होता है। अथवा पहले भी कृश और पश्चात् भी कृश होता है। 2. कृश और दृढ--कोई पुरुष शरीर से कृश होता है, किन्तु मनोबल से दृढ होता है। 3. दृढ और कृश-कोई पुरुष शरीर से दृढ होता है, किन्तु मनोबल से कृश होता है / 4. दृढ और दृढ --कोई पुरुष शरीर से दृढ होता है और मनोबल से भी दृढ होता है (251) / २५२-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-किसे णाममेग किससरीरे, किसे णाममेग दढसरीरे, दढे णाममेग किससरीरे, दढे णाममेग बढसरीरे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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