________________ चतुर्थ स्थान--प्रथम उद्देश] [ 253 चार गोरस सम्बन्धी विकृतियां कही गई हैं, जैसे-. 1. क्षीर (दूध), 2. दही, 3. घी, 4. नवनीत (मक्खन) (183) / १८४–चत्तारि सिणेहविगतीनो पग्णतामो, तं जहा--तेल्लं, घयं, वसा, णवणोतं / चार स्नेह (चिकनाई) वाली विकृतियां कही गई हैं, जैसे१. तेल, 2. घी, 3. बसा (चर्बी), 4. नवनीत (184) / १८५--चत्तारि महाविगतीनो, तं जहा-महं, मंसं, मज्जं, णवणीतं / चार महाविकृतियां कही गई हैं, जैसे-- 1. मधु, 2. मांस, 3. मद्य, 4. नवनीत (185) / गुप्त-अगुप्त-सूत्र १८६–चत्तारि कडागारा पण्णत्ता, तं जहा—गुत्ते णाम एगे गुत्ते, गुत्ते णाम एगे अगुत्ते, प्रगुत्ते णामं एगे गुत्ते, प्रगुत्ते णाम एगे अगुत्ते। ____एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गुत्ते णाम एगे गुत्ते, गुत्ते णाम एगे अगुत्ते, अगुत्त णाम एगे गुत्ते, अगुत्ते णामं एगे अगुत्ते / चार प्रकार के कूटागार (शिखर वाले घर अथवा प्राणियों के बन्धनस्थान) कहे गये हैं, जैसे-~ 1. गुप्त होकर गुप्त---कोई कूटागार परकोटे से भी घिरा होता है और उसके द्वार भी बन्द होते हैं अथवा काल की दृष्टि से पहले भी बन्द, बाद में भी बन्द / 2. गुप्त होकर अगुप्त-कोई कूटागार परकोटे से तो घिरा होता है, किन्तु उसके द्वार बन्द नहीं होते। 3. अगुप्त होकर गुप्त—कोई कूटागार परकोटे से घिरा नहीं होता, किन्तु उसके द्वार बन्द होते हैं। 4. अगुप्त होकर अगुप्त-कोई कूटागार न परकोटे से घिरा होता है और न उसके द्वार ही बन्द होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे 1. गुप्त होकर गुप्त-कोई पुरुष वस्त्रों को वेष-भूषा से भी गुप्त (ढंका) होता है और उसकी इन्द्रियां भी गुप्त (वशीभूत-काबू में) होती हैं / 2. गुप्त होकर अगुप्त-कोई पुरुष वस्त्र से गुप्त होता है, किन्तु उसकी इन्द्रियां गुप्त नहीं होती। 3. अगुप्त होकर गुप्त-कोई पुरुष वस्त्र से अगुप्त होता है, किन्तु उसकी इन्द्रियां गुप्त होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org