________________ चतुर्थ स्थान-प्रथम उद्देश] [233 पुनः प्रतिमा चार प्रकार की कही गई है / जैसे१. छोटी मोकप्रतिमा, 2. बड़ी मोकप्रतिमा, 3. यवमध्या, 4. वज्रमध्या। इन सभी प्रतिमाओं का विवेचन दूसरे स्थान के प्रतिमापद में किया जा चुका है (18) / अस्तिकाय-सूत्र ६-चत्तारि अस्थिकाया अजीवकाया पण्णत्ता, त जहा---धम्मत्थिकाए, अधम्मस्थिकाए, प्रागासस्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए। चार अस्तिकाय द्रव्य अजीवकाय कहे गये हैं। जैसे१. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशास्तिकाय, 4. पुद्गलास्तिकाय (66) / विवेचन-ये चारों द्रव्य तीनों कालों में पाये जाने से 'अस्ति' कहलाते हैं। और बहप्रदेशी होने से 'काय' कहे जाते हैं / अथवा अस्तिकाय अर्थात् प्रदेशों का समूहरूप द्रव्य / इन चारों द्रव्यों में दोनों धर्म पाये जाने से वे अस्तिकाय कहे गये हैं। १००--चत्तारि अस्थिकाया अरूविकाया पण्णत्ता, त जहा---धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासस्थिकाए, जीवस्थिकाए। चार अस्तिकाय द्रव्य अरूपीकाय कहे गये हैं। जैसे१. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशास्तिकाय, 4. जीवास्तिकाय (100) / विवेचन-जिसमें रूप, रसादि पाये जाते हैं, ऐसे पुद्गल द्रव्य को रूपी कहते हैं / इन धर्मास्तिकाय आदि चारों द्रव्यों में रूपादि नहीं पाये जाते हैं, अतः ये अरूपी काय कहे गये हैं। आम-पक्व-सूत्र १०१-चत्तारि फला पण्णत्ता, त जहा--आमे णाममेगे प्राममहुरे, प्रामे णाममेगे पक्कमहुरे, पक्के गाममेगे प्राममहुरे, पक्के णाममेगे पक्कमहुरे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-प्रामे णाममेगे आममहरफलसमाणे, प्रामे णाममेगे पक्कमहरफलसमाणे, पक्के णाममेग आममहुरफलसमाण, पक्के णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे। फल चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे--- 1. कोई फल आम (अपक्व) होकर भी प्राम-मधुर (अल्प मिष्ट) होता है। 2. कोई फल आम होकर के भी पक्व-मधुर (पके फल के समान अत्यन्त मिष्ट) होता है / 3. कोई फल पक्व होकर के भी आम-मधुर (अल्प मिष्ट) होता है। 4. कोई फल पक्व होकर के पक्व-मधुर (अत्यन्त मिष्ट) होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे 1. कोई पुरुष आम (आयु और श्रु ताभ्यास से अपक्व) होने पर भी आम-मधुर फल के समान उपशम भावादि रूप अल्प-मधुर स्वभाववाला होता है। 2. कोई पुरुष प्राम (आयु और श्रु ताभ्यास से अपक्व) होने पर भी पक्व-मधुर फल के समान प्रकृष्ट उपशम भाववाला और अत्यन्त मधुर स्वभावी होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org