________________ 232] [ स्थानाङ्गसूत्र ६३-[जीवा णं चहि ठाणेहि अट्ठकम्मपगडीप्रो चिणंति, तं जहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं / एवं जाव वेमाणियाणं / जीव चार कारणों से आठों कर्मप्रकृतियों का वर्तमान में संचय कर रहे हैं / जैसे१. क्रोध से, 2. मान से, 3. माया से और 4. लोभ से / इसी प्रकार वैमानिकों तक के सभी दण्डक वाले जीव वर्तमान में आठों कर्मप्रकृतियों का संचय कर रहे हैं (63) / ६४-जीवा णं चउहि ठाणेहि अट्टकम्मपगडीयो चिणिसंति, तं जहा--कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोमेणं / एवं जाव वेमाणियाणं / ] जीव चार कारणों से भविष्य में पाठों कर्मप्रकृतियों का संचय करेंगे / जैसे१. क्रोध से, 2. मान से, 3. माया से, 4. लोभ से / इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डक वाले जीव भविष्य में चारों कारणों से आठों प्रकार - की कर्म-प्रकृतियों का संचय करेंगे (94) / १५---एवं-उर्तिणस उवचिणंति उवचिणिस्संति, बंधिसु बंधति बंधिस्संति, उदीरिसु उदीरिति उदीरिस्संति, वेसु वेदेति वेदिस्संति, णिज्जरेंसु णिज्जरेंति णिज्जरिस्संति जाव वेमाणियाणं / [एवमेकेक्कपदे तिन्नि तिनि दंडगा भाणियवा] / इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डक बाले जोवों ने आठों कर्म-प्रकृतियों का उपचय किया है, कर रहे हैं और करेंगे / आठों कर्म-प्रकृतियों का बन्ध किया है, कर रहे हैं और करेंगे / पाठों कर्मप्रकृतियों की उदीरणा की है, कर रहे हैं, और करेंगे / आठों कर्म-प्रकृतियों को वेदा (भोगा) है, वेद रहे हैं और वेदन करेंगे। तथा आठों कर्म-प्रकृतियों की निर्जरा की है, कर रहे हैं और करेंगे (65) / प्रतिमा-सूत्र ६६–चत्तारि पडिमानो पणत्तामो, तं जहा-समाहिपडिमा, उवहाणपडिमा, विवेगपडिमा, विउस्सग्गपडिमा। प्रतिमा चार प्रकार की कही गई है / जैसे१. समाधिप्रतिमा, 2. उपधान-प्रतिमा, 3. विवेक-प्रतिमा, 4. व्युत्सर्ग-प्रतिमा (66) / ९७-चत्तारि पडिमानो पण्णत्तामो, त जहा-भद्दा, सुभद्दा महाभद्दा, सव्वतोभद्दा / पुनः प्रतिमा चार प्रकार की कही गई है / जैसे१. भद्रा, 2. सुभद्रा, 3. महाभद्रा, 4. सर्वतोभद्रा (67) / १८-चत्तारि पडिमानो पण्णताश्रो, तजहा-खुड्डिया मोयपडिमा, महल्लिया मोयपडिमा, जवमझा, वइरमझा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org