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________________ चतुर्थ स्थान-प्रथम उद्देश ] [ 217 पुन: वस्त्र चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. कोई वस्त्र प्रकृति से शुचि और शुचि रूप वाला होता है। 2. कोई वस्त्र प्रकृति से शुचि, किन्तु अशुचि रूप वाला होता है। 3. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुचि, किन्तु शुचि रूप वाला होता है। 4. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुचि और अशुचि रूप वाला होता है (47) / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. कोई पुरुष शरीर से शुचि (पवित्र) और शुचि रूप वाला होता है / 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि रूप वाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि रूप वाला होता हैं। 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि रूप वाला होता है / ४८-चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा-सुई णामं एगे सुइमणे, सुई णाम एगे असुइमणे, असुई णाम एगे सुइमणे, असई णाम एगे असुइमणे / पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे-- 1. कोई पुरुष शरीर से शुचि और मन से भी शुचि होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि मन वाला होता है / 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि मन वाला होता है / 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि मन वाला होता है (48) / ४६-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-सुई णाम एगे सुइसंकप्पे, सई णाम एगे असुइसंकप्पे, प्रसुई णामं एगे सुइसंकप्पे, असुई णाम एगे असुइसंकप्पे / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि संकल्पवाला होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि संकल्पवाला होता है / 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि संकल्पवाला होता है। 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि संकल्पवाला होता है (46) / ५०–चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा-सुई णाम एगे सुइपण्णे सुई णाम एगे असुइपणे, असुई णाम एगे सुइपण्णे, असुई णामं एगे असुइपण्णे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और प्रज्ञा से भी शुचि होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि प्रज्ञावाला होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि प्रज्ञावाला होता है / 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि प्रज्ञावाला होता है (50) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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