________________ 216 ] [ स्थानाङ्गसूत्र एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-सुई णामं एगे सुई, चउभंगो। एवं जहेव सुद्धणं वत्थेणं भणितं तहेव सुईणा जाव परक्कमे / [सुई णाम एगे असुई, असुई णाम एगे सुई, असुई णाम एगे असुई। वस्त्र चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई वस्त्र प्रकृति से शुचि (स्वच्छ) और परिष्कार-सफाई से शुचि होता है / 2. कोई वस्त्र प्रकृति से शुचि, किन्तु अपरिष्कार-सफाई न होने से अशुचि होता है। 3. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुचि, किन्तु परिष्कार से शुचि होता है / 4. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुचि और अपरिष्कार से भी अशुचि होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष शरीर से शुचि और स्वभाव से शुचि होता है। 2. कोई पुरुष शरीर से शुचि, किन्तु स्वभाव से अशुचि होता है। 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु स्वभाव से शुचि होता है। 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और स्वभाव से भी अशुचि होता है (45) / ४६-चत्तारि वत्था पण्णता, तं जहा-सुई णाम एगे सुइपरिणते, सुई णाम एगे असुइपरिणते, असुई णामं एगे सुइपरिणते, असुई णाम एगे असुइपरिणते / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-सुई णाम एगे सुइपरिणते, सुई णाम एगे असुइपरिणते, असुई णामं एगे सुइपरिणते, असुई णाम एगे असुइपरिणते / पुनः वस्त्र चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कोई वस्त्र प्रकृति से शुचि और शुचि-परिणत होता है। 2. कोई वस्त्र प्रकृति से शुचि, किन्तु अशुचि-परिणत होता है / 3. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुचि, किन्तु शुचि-परिणत होता है। 4. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुचि और अशुचि-परिणत होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. कोई पुरुष शरीर से शुचि और शुचि-परिणत होता है / 1. कोई पुरुष शरीर से शुचि किन्तु अशुचि-परिणत होता है / 3. कोई पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु शुचि-परिणत होता है / 4. कोई पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि-परिणत होता है (46) / ४७–चत्तारि वत्था पण्णता, त जहा-सुई णामं एगे सुइरूवे, सुई णामं एगे असुइरूवे, असुई णामं एगे सुइरूवे, असुई णामं एगे असुइरूवे।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, त जहा---सुई णाम एगे सुइरूवे, सुई णाम एगे असुइरूवे, असई णाम एगे सुइरूवे, असुई णाम एगे असुइरूवे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org