________________ तृतीय स्थान-चतुर्थ उद्देश ] [ 166 विमान प्रस्तर, मध्यम-मध्यम ग्रे वेयक विमान प्रस्तर और मध्यम-उपरिम ग्रंवेयक विमान प्रस्तर (538) / ५३६-उवरिम-गविज्ज-विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, त जहा-उरिम-हेदिम-गविज्जविमाण-पत्थडे, उवरिम-मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम उवरिम-गविज्ज-विमाण-पत्थडे / उपरिम अवेयक-विमान-प्रस्तर तीन प्रकार का कहा गया है--उपरिम-अधस्तन वेयकविमान प्रस्तर, उपरिम-मध्यम | वेयक-विमान प्रस्तर और उपरिम-उपरिम वेयक विमान प्रस्तर (536) / विवेचन--- वेयकविमान सब मिलकर नौ हैं और वे एक-दूसरे के ऊपर अवस्थित हैं। उन्हें पहले तीन विभागों में कहा गया है-नीचे का त्रिक, बीच का त्रिक और ऊपर का त्रिक / तत्पश्चात् एक-एक त्रिक के तीन-तीन विकल्प किए गए हैं। सब मिलकर नौ विमान होते हैं / पापकर्म-सूत्र ५४०–जीवाणं तिहाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिम्संति वा, त जहा-इस्थिणिवत्तिते, पुरिसणिव्वत्तिते, गपुंसगणिवत्तिते। एवं-चिण-उवचिण-बंध उदीर-वेद तह णिज्जरा चेव / जीवों ने त्रिस्थान-निर्वतित पुद्गलों का कर्मरूप से संचय किया है, संचय करते हैं और संचय करेंगे 1. स्त्रीनिवर्तित (स्त्रीवेद द्वारा उपाजित) पुद्गलों का कर्मरूप से संचय / 2. पुरुषनिर्वतित (पुरुषवेद द्वारा उपाजित) पुद्गलों का कर्मरूप से संचय / 2. नपुसकनिर्वतित (नपुसकवेद द्वारा उपाजित) पुद्गलों का कर्मरूप से संचय / इसी प्रकार जीवों ने विस्थान-निर्वर्तित पुद्गलों का कर्मरूप से उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन तथा निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे। पुद्गल-सूत्र ५४१--तिपदेसिया खंधा प्रणता पण्णत्ता / त्रि-प्रदेशी (तीन प्रदेश वाले) पुद्गल स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (541) / ५४२–एवं जाव तिगुणलुक्खा पोग्गला प्रणेता पण्णत्ता। इसी प्रकार तीन प्रदेशावगाढ़, तीन समय की स्थितिवाले और तीन गुणवाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं। तथा शेष सभी वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के तीन-तीन गुणवाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं। / / तृतीय स्थानक समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org