________________ 172] [ स्थानाङ्ग सूत्र प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों का प्रतिलेखन करना कल्पता है१. पृथ्वीशिला–समतल भूमि या पाषाण-शिला। 2. काष्ठशिला-सूखे वृक्ष का या काठ का समतल भाग, तख्ता प्रादि / 3. यथासंसृत-घास, पलाल (पियार) प्रादि जो उपयोग के योग्य हो / 423 - [पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पति तनो संघारगा अणुण्णवेत्तए, त जहापुढविसिला, कट्ठसिला, प्रहासंथडमेव / प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों की अनुज्ञा लेना कल्पता है--पृथ्वीशिला, काष्ठशिला और यथासंसृत संस्तारक की ( 423) / ४२४-पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पति तो संघारमा उवाइणित्तए, त जहापुढविसिला, कट्टसिला, अहासंथडमेव] / प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों का उपयोग करना कल्पता हैपृथ्वीशिला, काष्ठशिला और यथासंसृत संस्तारक का (424) / ] काल-सूत्र ४२५-तिविहे काले पण्णते, त जहा-तोए, पजुप्पण्णे, प्रणागए। ४२६--तिविहे समए पण्णत्ते, त जहा-तीए, पडुप्पण्णे, अणागए। ४२७--एवं-प्रावलिया प्राणापाणू थोवे लवे मुहत्त अहोरत जाव वाससतसहस्से पुव्वंगे पुत्वे जाव प्रोसप्पिणी। ४२८-तिविधे पोग्गलपरिय? पण्णत्ते, त जहा-तीते, पडुप्पण्ण, अणागए। काल तीन प्रकार का कहा गया है- अतीत (भूत-काल), प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) काल और अनागत (भविष्य) काल (425) / समय तीन प्रकार का कहा गया है-अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागतसमय (426) / इसी प्रकार आवलिका, पान-प्राण (श्वासोच्छ वास) स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र (दिन-रात) यावत् लाख वर्ष, पूर्वाङ्ग, पूर्व, यावत् अवसर्पिणी तीन तीन प्रकार की जानना चाहिए (427) / पुद्गल-परावर्त तीन प्रकार का कहा गया है-अतीत-पुद्गल-परावर्त, प्रत्युत्पन्नपुद्गल-परावर्त और अनागत-पुद्गल परावर्त (428) / बचन-सूत्र ४२६-तिविहे वयणे पण्णत्त, त जहा–एगवयणे, दुवयणे, बहुवयणे। अहवा-तिविहे वयणे पण्णते, त जहा-इत्थिवयणे, पुवयणे, गपुसगवयणे / अहवा-तिविहे वयणे पण्णते. तं जहा-तोतवयणे, पडुप्पण्णवयणे, प्रणागयवयणे / वचन तीन प्रकार के कहे गये हैं—एकवचन, द्विवचन और बहुवचन / अथवा वचन तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्रीवचन, पुरुषवचन और नपुंसक वचन / अथवा वचन तीन प्रकार के कहे गये हैं-अतीत वचन, प्रत्युत्पन्न वचन और अनागत-वचन (426) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org