________________ तृतीय स्थान-तृतीय उद्देश ] [163 विवेचन–उक्त तीन सूत्रों में जीवों के व्यवहार की क्रमिक भूमिकानों का निर्देश किया गया है। संज्ञी जीव में सर्वप्रथम दृष्टिकोण का निर्माण होता है। तत्पश्चात् उसमें रुचि या श्रद्धा उत्पन्न होती है और तदनुसार वह कार्य करता है। इस कथन का अभिप्राय यह है कि यदि जीव में सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो गया है तो उसकी रुचि भी सम्यक् होगी और तदनुसार उसके मन वचन काय की प्रवृत्ति भी सम्यक् होगी / इसी प्रकार दर्शन के मिथ्या या मिश्रित होने पर उसकी रुचि एवं प्रवृत्ति भी मिथ्या एवं मिश्रित होगी। व्यवसाय-सूत्र ३६५-तिबिहे ववसाए पण्णत्ते, त जहा-धम्मिए वबसाए, अम्मिए ववसाए, धम्मियाधम्मिए ववसाए। अहवा–तिविधे ववसाए पण्णत्ते, त जहा--पच्चक्खे, पच्चइए, प्राणुगामिए / अहवा-तिविधे क्वसाए पण्णत्ते, त जहा-इहलोइए, परलोइए, इहलोइय-परलोइए। व्यवसाय (वस्तुस्वरूप का निर्णय अथवा पुरुषार्थ की सिद्धि के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान ) तीन प्रकार का कहा गया है-धार्मिक व्यवसाय, अधार्मिक व्यवसाय और धार्मिकाधार्मिक व्यवसाय / अथवा व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-प्रत्यक्ष व्यवसाय, प्रात्ययिक (व्यवहारप्रत्यक्ष) व्यवसाय और अनुगामिक (सानुमानिक व्यवसाय) अथवा व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-ऐहलौकिक, पारलौकिक और ऐहलौकिक-पारलौकिक (365) / / ३९६-इहलोइए ववसाए तिविहे पण्णत्ते, तजहा-लोइए, वेइए, सामइए। ऐहलौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-लौकिक, वैदिक और सामयिक-श्रमणों का व्यवसाय (366) / ३६७-लोइए ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा-प्रत्थे, धम्मे, कामे / लौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-अर्थव्यवसाय, धर्मव्यवसाय और कामव्यवसाय (397) / ३९८-वेइए ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहारिउव्वेदे, जउध्वेदे- सामवेदे / वैदिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है-ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद व्यवसाय अर्थात् इन वेदों के अनुसार किया जाने वाला निर्णय या अनुष्ठान (368) / ३६६-सामइए ववसाए तिविधे पण्णते त जहा–णाणे, दंसणे, चरित्ते / सामयिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है—ज्ञान, दर्शन और चरित्र व्यवसाय (366) / विवेचन–उपर्युक्त पांच सूत्रों में विभिन्न व्यवसायों का निर्देश किया गया है / व्यवसाय का अर्थ है-निश्चय, निर्णय और अनुष्ठान / निश्चय करने के साधनभूत ग्रन्थों को भी व्यवसाय कहा जाता है / उक्त पांच सूत्रों में विभिन्न दृष्टिकोणों से व्यवसाय का वर्गीकरण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org