________________ तृतीय स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 153 2. तदन्यमन--अलक्ष्य में लगा हुआ मन / 3. नो-अमन--मन का लक्ष्य-हीन व्यापार (357) / अमन तीन प्रकार का कहा गया है-- 1. नो-तन्मन---लक्ष्य में नहीं लगा हुआ मन / 2. नो-तदन्यमन--अलक्ष्य में नहीं लगा अर्थात् लक्ष्य में लगा हुआ मन / 3. अमन--मनकी अप्रवृत्ति (358) / वृष्टि-सूत्र 356 --तिहि ठाणेहि अप्पवुट्ठीकाए सिया, तं जहा 1. तस्ति च णं देसंसि वा पदेसंसि वा णो बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताते वक्कमति विउक्कमति चयंति उववज्जति / / 2. देवा णागा जक्खा भूता णो सम्ममाराहिता भवंति, तत्थ समुट्टियं उदगपोग्गलं परिणत वासितकामं अण्णं देसं साहरंति / 3. अब्मवद्दलगं च णं समुद्रुितं परिणतं वासितुकामं वाउकाए विधुति / इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहि अप्पवुट्ठिगाए सिया / तीन कारणों से अल्पवृष्टि होती है 1. किसी देश या प्रदेश में (क्षेत्र स्वभाव से) पर्याप्त मात्रा में उदकयोनिक जीवों और पुद्गलों के उदकरूप में उत्पन्न या च्यवन न करने से / 2. देवों, नागों, यक्षों या भूतों का सम्यक् प्रकार से प्राराधन न करने से, उस देश में समुत्थित, वर्षा में परिणत तथा बरसते ही वाले उदक-पुद्गलों (मेघों) का उनके द्वारा अन्य देश में संहरण कर लेने से। 3. समुत्थित, वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले बादलों को प्रचंड वायु नष्ट कर देती है। इन तीन कारणों से अल्पवृष्टि होती है (356) / ३६०-तिहि ठाणेहि महावुट्ठीकाए सिया, तं जहा 1. तस्सि च णं देसंसि वा पदेसंसि वा बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमति विउक्कमति चयंति उववज्जति / 2. देवा णागा जक्खा भूता सम्ममाराहिता भवंति, अण्णत्थ समुद्वितं उदगपोग्गलं परिणयं वासिउकामं तं देसं साहति / 3. अभवद्दलगं च णं समुट्टितं परिणयं वासितुकामं णो वाउपाए विधुणति / इच्चेतेहि तिहि ठाणेहि महावट्टिकाए सिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org