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________________ 150] [ स्थानाङ्गसूत्र भुतधर-सूत्र ३४४–तप्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुत्तधरे, प्रत्थधरे, तदुभयधरे / श्रुतधर पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-सूत्रधर, अर्थधर और तदुभयधर (सूत्र और अर्थ दोनों के धारक) (344) / उपधि-सूत्र ____३४५--कम्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तप्रो वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा-जंगिए, भंगिए, खोमिए / निर्ग्रन्थ साधुओं को तथा निम्रन्थिनी साध्वियों को तीन प्रकार के वस्त्र रखना और पहिनना कल्पता है-जाङ्गिक (ऊनी) भाङ्गिक (सन-निर्मित) और क्षौमिक (कपास-रूई-निर्मित) (345) / ३४६–कप्पति णिग्गंधाण वा जिग्गंथीण वा तो पायाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा–लाउयपाने वा, दारुपादे वा, मट्टियापादे वा / निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को तीन प्रकार के पात्र धरना और उपयोग करना कल्पता है-- अलाबु- (तुम्बा) पात्र, दारु-(काष्ठ-)पात्र और मृत्तिका-(मिट्टी का)पात्र (346) / ३४७–तिहि ठाणेहि वत्थं धरेज्जा, तं जहा-हिरिपत्तियं, दुगुछापत्तियं परीसहवत्तियं / निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियां तीन कारणों से वस्त्र धारण कर सकती हैं१. ह्रीप्रत्यय से (लज्जा-निवारण के लिए ) / 2. जुगुप्साप्रत्यय से (घृणा निवारण के लिए)। 6. परीषहप्रत्यय से (शीतादि परीषह के निवारण के लिए) (347) / आत्म-रक्ष-सूत्र तनो प्रायरक्खा पण्णता, तं जहा-धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएत्ता भवति, तुसिणीए बा सिया, उद्वित्ता वा प्राताए एगंतमंतमवक्कमेज्जा। तीन प्रकार के प्रात्मरक्षक कहे गये हैं१. अकरणीय कार्य में प्रवृत्त व्यक्ति को धार्मिक प्रेरणा से प्रेरित करने वाला। 2. प्रेरणा न देने की स्थिति में मौन-धारण करने वाला। 3. मौन और उपेक्षा न करने की स्थिति में वहाँ से उठकर एकान्त में चला जाने वाला (348) / विकट-दत्ति-सूत्र ३४६--णिग्गंथस्स णं गिलायमाणस्स कप्पति तो वियडदतीनो पडिग्गाहित्तते, तं जहाउक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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