________________ तृतीय स्थान तृतीय उद्देश आलोचना-सूत्र ३३८-तिहि ठाणेहि मायी मायं कटु णो पालोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा, णो णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउदृज्जा, णो विसोहेज्जा, णो प्रकरणयाए अभुट्ठज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहा---प्रकरिसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं / तीन कारणों से मायावी माया करके भी उसकी आलोचना नहीं करता, प्रतिक्रमण नहीं करता, आत्मसाक्षी से निन्दा नहीं करता, गुरुसाक्षी से गहीं नहीं करता, व्यावर्तन (उस सम्बन्धी अध्यवसाय को बदलना) नहीं करता, उसकी शुद्धि नहीं करता, उसे पुनः नहीं करने के लिए अभ्युद्यत नहीं होता और यथायोग्य प्रायश्चितं एवं तपःकर्म अंगीकार नहीं करता - 1. मैंने अकरणीय किया है। (अब कैसे उसकी निन्दादि करू ?) 2. मैं अकरणीय कर रहा हूं। (जब वर्तमान में भी कर रहा हूं तो कैसे उसकी निंदा करू?) 3. मैं अकरणीय करूगा / (आगे भी करूगा तो फिर कैसे निन्दा करू ?) ३३६-तिहि ठाणेहि मायो मायं कट्ट णो पालोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा, जो णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउज्जा, णो विसोहेज्जा, जो अकरणयाए प्रभुट्ठज्जा, जो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहा-अकित्ती वा में सिया, प्रवणे वा मे सिया, अविणए वा मे सिया। तीन कारणों से मायावी माया करके भी उसकी आलोचना नहीं करता, प्रतिक्रमण नहीं करता, निन्दा नहीं करता, गर्दा नहीं करता, व्यावर्तन नहीं करता, उसकी शुद्धि नहीं करता, उसे पुनः नहीं करने के लिए अभ्युद्यत नहीं होता और यथायोग्य प्रायश्चित्त एवं तपःकर्म अंगीकार नहीं करता--- 1. मेरी अकीत्ति होगी। 2. मेरा अवर्णवाद होगा / 3. दूसरों के द्वारा मेरा अविनय होगा। ३४०—तिहि ठाणेहि मायी मायं कटटु णो पालोएज्जा, [णो पडिक्कमेज्जा, णो णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउदृज्जा, जो विसोहेज्जा, णो प्रकरणयाए अब्भुट्ठज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं] पडियज्जेज्जा, तं जहा.-कित्ती वा मे परिहाइस्सति, जसे वा में परिहाइस्सति पूयासक्कारे वा में परिहाइस्सति / तीन कारणों से मायावी माया करके भी उसकी आलोचना नहीं करता, (प्रतिक्रमण नहीं करता, निन्दा नहीं करता, गर्दा नहीं करता, व्यावर्तन नहीं करता, उसकी शुद्धि नहीं करता, उसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International