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________________ 142] | स्थानाङ्गसूत्र पुरुष 'रस प्रास्वादन नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (308) / / ३०६-[तो पुरिसजाया पण्णता, तजहा-फासं फासेत्ता णामेगे सुमणे भवति, फासं फासेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, फासं फासेत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। 310 --तम्रो पुरिसजाया पण्णता, त जहा--फासं फासेमीतेगे सुमणे भवति, फासं फासेमीतेगे दुम्मणे भवति, फासं फासे मोतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / ३११--तो पुरिसजया पण्णता, तं जहा-फासं फासिस्सामी. तेगे समणे भवति, फासं फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, फासं फासिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुप 'स्पर्श को स्पर्श करके' सुमनस्क होता है / कोई पुरुप स्पर्श को स्पर्श करके' दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (306) / पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (310) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (311) / ३१२--[तो पुरिसजाया पण्णता, तजहा-फासं अफासेत्ता णामेगे सुमणे भवति, फासं अकासेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, फासं अफासेत्ता णामगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / ३१३--तम्रो पुरि मजाया पण्णत्ता, त जहा- फासं ण फासेमीतेगे सुमणे भवति, फासं ण फासे मीतेगे दुम्मणे भवति, फास ण फासेमीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / ३१४-सयो पुरिसजाया पण्णता, त जहा--फासं ण फासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, फासं ण फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, फासं ण फासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करके' दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (312) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करता हूं इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (313) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष स्पर्श को स्पर्श नहीं करूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (314) / विवेचन-उपर्युक्त 188 से 314 तक के सूत्रों में पुरुषों की मानसिक दशानों का विश्लेषण किया गया है। कोई पुरुष उसी कार्य को करते हुए हर्ष का अनुभव करता है, यह व्यक्ति को राग. Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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