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________________ 134] | स्थानाङ्गसूत्र पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं.-कोई पुरुप 'भोजन न करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'भोजन न करके' दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष 'भोजन न करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (246) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'भोजन नहीं करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'भोजन नहीं करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'भोजन नहीं करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (247) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'भोजन नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'भोजन नहीं करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'भोजन नहीं करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (248) / ___ २४६--[तो पुरिसजाया पणत्ता, त जहा–लभित्ता णामेगे सुमणे भवति, लभित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, लभित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २५०-तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–लभामीलेगे सुमणे भवति, लभामीतेगे दुम्मणे भवति, लभामीतेगे जोसुमणे णोदुम्मणे भवति / 251-- तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-लभिस्सामीतेगे सुमणे भवति, लभिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, लभिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं -- कोई पुरुष 'प्राप्त कर के' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त करके' दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'प्राप्त करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (246) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'प्राप्त करता हूं' इसलिए सुमनस्क्र होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त करता हूं इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'प्राप्त करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (250) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'प्राप्त करूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त करूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'प्राप्त करूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (251) / २५२-[तम्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-अलभित्ता णामेगे सुमणे भवति, अलभित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अलभित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २५३-तत्रों पुरिसाजाया पण्णत्ता, त जहा–ण लभामीतेगे सुमणे भवति, ण लभामीतेगे दुम्मणे भवति, ण लभामोतेगे जोसुमणेणोदुम्मणे भवति / 254- तो पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा--ण लभिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण लभिस्सामीलेगे दुम्मणे भवति, ण लभिस्सामीलेगे णोंसुमणे-णोदुम्मणे भवति / [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'प्राप्त न करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त न करके' दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष 'प्राप्त न करके' न सुमनस्क होता है और न दर्मनस्क होता है (252) / पनः परुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'प्राप्त नहीं करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त नहीं करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'प्राप्त नहीं करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (253) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'प्राप्त नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'प्राप्त नहीं करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'प्राप्त नहीं करूंगा' इसलिए म सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (254) / ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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