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________________ तृतीय स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 133 नस्क होता है (238) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'दूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'दूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'दूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (236) / ] २४०-[तओ पूरिसजाया पण्णत्ता त जहाअदच्चा णामेगे सुमणे भवति, अदच्चा णानेगे दुम्मणे भवति, अदच्चा णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २४१-तत्रों पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--ण देमीतेगे सुमणे भवति, ण बेमीतेगे दुम्मणे भवति, ण देमीतेगे णोंसुमणे-णोंदुम्मणे भवति / २४२–तम्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहाण दासामीतेगे सुमणे भवति, ण दासामीतेगे दुम्मणे भवति, ण दासामीतेगे णोंसुमणे-णोंदुम्मणे भवति / [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं देकर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं देकर' दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष नहीं देकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (240) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'नहीं देता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं देता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष नहीं देता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (241) / कोई पुरुष नहीं दूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं दूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष नहीं दूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (242) / [२४३–तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तजहा-भुजित्ता पामेगे सुमणे भवति, भुजित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, भुजित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २४४–तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- जामीतेगे सुमणे भवति, भुजामीतेगे दुम्मणे भवति. भुजामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / 245 - तो पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-भु जिस्सामीतेगे सुमणे नवति, भुजिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, भुजिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'भोजन कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'भोजन कर' दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'भोजन कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (243) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'भोजन करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'भोजन करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'भोजन करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (244) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'भोजन करूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'भोजन करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'भोजन करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (245) / ] २४६-[तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अभुजिता णामेगे सुमणे भवति, प्रभु जित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अभुजित्ता णामेगे णोंसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २४७–तो पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा–ण भुजामीतेगे सुमणे भवति, ण भुजामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भुजामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २४८–तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा---ण भुजिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण भुंजिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भुजिस्सामोतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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