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________________ श्री ज्ञाताधर्मकथांग पढ़ा, उसका मनन किया। कई अनुपम एवं अद्वितीय विशेषताओं से परिव्याप्त प्रस्तुत आगम-ग्रन्थ का अवलोकन कर गहरे आनन्द का अनुभव किया। विद्वत्-शिरोमणि एवं प्रसिद्ध आगमज्ञ श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल, जो प्रस्तुत ग्रन्थ के विवेचक, अनुवादक हैं, उन्हें मैं साधुवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने गहरे चिन्तन व मनन से ग्रन्थ को सुन्दरतम बनाया है। अनुयोगाचार्य मुनिश्री कान्तिसागरजी महाराज ग्रन्थमाला की लड़ी की कड़ी में ज्ञातासूत्र का सर्वश्रेष्ठ संस्करण प्रकाशित हो रहा है। ज्ञाताधर्मकथांग में मूलपाठ के साथ ही हिन्दी में अनुवाद दिया गया है। जहाँ कहीं आवश्यक हमा, विषय को स्पष्ट करने के लिये संक्षेप में सारपूर्ण विवेचन भी दिया गया है। इस आगम के सम्पादक और विवेचक हैं जैनजगत् के तेजस्वी नक्षत्र, साहित्य मनीषी, सम्पादनकला-मर्मज्ञ पं० शोभाचन्द्रजी भारिल्ल, जिन्होंने आज तक शताधिक ग्रन्थों का सम्पादन किया है। वे एक यशस्वी सम्पादक के रूप में जाने माने और पहिचाने जाते हैं। ........ अनुवाद और विवेचन की भाषा सरस. सरल और सुबोध है। शैली मन को लुभाने वाली है।... श्रद्धय युवाचार्यश्री के दिशानिर्देशन में यह सम्पादन हुआ है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस सम्पादन का सर्वत्र समादर होगा। 0 देवेन्द्रमुनि शास्त्री Jan Education International
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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