________________ तृतीय स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 126 'बैठ कर' दुर्मनस्क होता है। कोई पुरुष 'बैठकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (207) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं- कोई पुरुष 'बैठता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'बैठता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'बैठता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (208) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'बैठूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'बैठूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'बैठूगा' इसलिये न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (206) / ] ___२१०-[तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तजहा–प्रणिसिइत्ता णामेगे सुमणे भवति, अणिसिइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, प्रणिसिइत्ता णामेगे जोसुमणे-गोदुम्मणे भवति / २११–तो पुरिसजाया पण्णता, त जहा–ण णिसीदामीतेगे सुमणे भवति, ण णिसीदामीतेगे दुम्मणे भवति, ण णिसीदामोतेगे जोसुमणे-णोंदुम्मणे भवति / २१२–तनो पुरिसजाया पण्णता, त जहाण णिसीदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण णिसोदिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण णिसोदिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं बैठ कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं बैठ कर' दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष नहीं बैठ कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (210) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष नहीं बैठता हूं इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष नहीं बैठता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष नहीं बैठता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (211) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये है --कोई पुरुष नहीं बैठूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं बैठूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष नहीं बैठूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (212) / ] २१३-तो पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-हंता गामेगे समणे भवति, हंता णामेगे दुम्मणे भवति, हंता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २१४–तम्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहाहणामीतेगे सुमणे भवति, हणामीतेगे दुम्मणे भवति, हणामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २१५---तो पुरिसजाया पण्णता, त जहा–हणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, हणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, हणिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / ] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष ‘मार कर' सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'मार कर' दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'मार कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (213) / पुन: पुरुष तीन प्रकार के होते हैं-- कोई पुरुष 'मारता हूँ' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'मारता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'मारता हूँ' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (214) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'मारूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'मारूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'मारूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (215) / ] २१६-[तप्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-अहंता णामेगे सुमणे भवति, अहंता णामेगे दुम्मणे भवति, अहंता णामेगे जोसुमणे-गोदुम्मणे भवति / २१७-तो पुरिसजाया पण्णत्ता, त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org