________________ 112] [ स्थानाङ्गसूत्र अवसर्पिणी तीन प्रकार की कही गई है--उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य (86) / इसी प्रकार दुःषम दुःषमा तक छहों पारा जानना चाहिए, यथा [सुषमसुषमा तीन प्रकार की कही गई हैउत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / सुषमा तीन प्रकार की कही गई है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / सुषमा-दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / दुःषम-सुषमा तीन प्रकार की कही गई है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / दुःषम-दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / (60) / ] उत्सपिणी तीन प्रकार की कही गई है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य (61) / इसी प्रकार छहों पारा जानना चाहिए यथा-दुःषम-दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / दुःषमसुषमा तीन प्रकार की कही गई है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / सुषम दुःषमा तीन प्रकार की कही गई है उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / सुषमा तीन प्रकार की कही गई है—उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य / सुषम सुषमा तीन प्रकार की कही गई है-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य (62) 1] अच्छिन्न-पुद्गल-चलन-सूत्र ९३-तिहि ठाणेहि प्रच्छिण्णे पोग्गले चलेज्जा, त जहा-पाहारिज्जमाणे वा पोग्गले चलेज्जा, विकुन्धमाणे वा पोग्गले चलेज्जा, ठाणाप्रो वा ठाणं संकामिज्जमाणे पोग्गले चलेज्जा। अच्छिन्न पुद्गल (स्कन्ध के साथ संलग्न पुद्गल परमाणु) तीन कारणों से चलित होता हैजीवों के द्वारा आकृष्ट होने पर चलित होता है, विक्रियमाण (विक्रियावशवर्ती) होने पर चलित होता है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर संक्रमित होने पर (हाथ आदि द्वारा हटाने पर) चलित होता है। उपधि-सूत्र १४—तिविहे उवधी पण्णत्ते, त जहा--कम्मोवही, सरीरोवही, बाहिरभंडमत्तोवही / एवं असुरकुमाराणं भाणियन्वं / एवं-एगिदियणेरइयवज्ज जाव वेमाणियाणं / अहवा-तिविहे उवधी पण्णत्ते, त जहा-सचित्ते, अचित्ते, मीसए / एवं--णेरइयाणं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं। उपधि तीन प्रकार की कही गई है—कर्म-उपधि, शरीर-उपधि और वस्त्र-पात्र आदि बाह्यउपधि / यह तीनों प्रकार की उपधि एकेन्द्रियों और नारकों को छोड़कर असुरकुमारों से लेकर वैमानिक-पर्यन्त सभी दण्डकों में कहना चाहिए। विवेचन--जिस के द्वारा जीव और उसके शरीर आदि का पोषण हो उसे उपधि कहते हैं। नारकों और एकेन्द्रिय जीव बाह्य-उपकरणरूप उपधि से रहित होते हैं, अत: यहां उन्हें छोड़ दिया गया है। आगे परिग्रह के विषय में भी यही समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org