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________________ 78] [ स्थानाङ्गसूत्र ३४८-तहेव जाव दो कुरामो पण्णत्तानो- देवकुरा चव, उत्तरकुरा चेव / तत्थ णं दो महतिमहालया महददमा पण्णत्ता, तजहा कडसामली चव, पउमरुक्खे चेव / देवा-गरुले चेव वेणुदेवे, पउमे चव जाव छविहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरति / तथैव यावत् (जम्बूद्वीप के प्रकरण में कहे गये सूत्र 266-271 का सर्व वर्णन यहां वक्तव्य है ) दो कुरु कहे गये हैं। वहाँ दो महातिमहान् महाद्र म कहे गये हैं--कूटशाल्मली और पद्मवृक्ष / उनमें से कूटशाल्मली वृक्ष पर गरुडजाति का वेणुदेव और पद्मवृक्ष पर पद्मदेव रहता है / (यहां पर जम्बूद्वीप के समान सर्व वर्णन वक्तव्य है / ) यावत् भरत और ऐरवत इन दोनों क्षेत्रों में मनुष्य छहों ही कालों के अनुभाव को अनुभव करते हुए विचरते हैं (348) / ३४६-पुक्खरवरदीवडढपच्चत्थिमद्ध णं मंदरस्स पचयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता / तहेव णाणतं-कूडसामली चव, महापउमरुक्खे चेव / देवा-गरुले चव वेणुदेवे, पुंडरीए चेव। अर्धपुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध में मन्दर पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गये हैंदक्षिण में भरत और उत्तर में ऐरवत। उनमें (आयाम, विष्कम्भ, संस्थान और परिधि की अपेक्षा) कोई नानात्व नहीं है। विशेष इतना ही है कि यहां दो विशाल द्रम हैं-कूटशाल्मली और महापद्म। इनमें से कूटशाल्मली वृक्ष पर गरुडजाति का वेणुदेव और महापद्मवृक्ष पर पुण्डरीक देव रहता है (346) / ३५०-पुक्खरवरदीवड्ढे णं दीवे दो भरहाई, दो एरवयाइं जाव दो मंदरा, दो मंदरचूलियाओ। अर्धपुष्करवर द्वीप में दो भरत, दो ऐरवत से लेकर यावत्, और दो मन्दर, और दो मन्दरचूलिका तक सभी दो-दो हैं (350) / बेदिका-पद ३५१-पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाई उड्ढमुच्चत्तेणं पणत्ता। 352- सम्वे. सिपि णं दीवसमुद्दाणं वेदियाओ दो गाउयाइं उड्ढमुच्चत्तेणं पण्णत्तायो / पुष्करवर द्वीप की वेदिका दो कोश ऊंची कही गई है (351) / सभी द्वीपों और समुद्रों की वेदिकाएँ दो-दो कोश ऊंची कही गई हैं (352) / इन्द्र-पद ३५३-दो असुरकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा-चमरे चेव, बली चे व। ३५४--दो णागकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा-धरणे चेव, भूयाणंदे चेव / ३५५-दो सुवण्णकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा.-वेणुदेवे चेव, वेणुदाली चेव / ३५६-दो विज्जुकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा-हरिच्चेव,हरिस्सहे चेव / ३५७-दो अग्गिकुमारिदा पण्णता, तं जहा--अग्गिसिहे चेव, अग्गिमाणवे चेव / ३५८-दो दीवकुमारिदा पण्णता, तं जहा-पुण्णे चेव, विसिट्ठ चेव / ३५६-दो उदहिकुमारिदा पण्णता, तं जहा-जलकते चेव, जलप्पभे चेव / ३६०-दो दिसाकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा---प्रमियगती चेव, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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