________________ द्वितीय स्थान-तृतीय उद्देश ] [75 ३३२-एवं-जहा जंबद्दीवे तहा एत्थवि भाणियब्वं जाव छविहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, त जहा-भरहे चेव, एरवए चेव, गवरं-कूडसामली चेव, महाधायईरुक्खे चेव / देवा गरुले चव वेणुदेवे, पियदंसणे चे व / _इसी प्रकार जैसा जम्बूद्वीप के प्रकरण में वर्णन किया है, वैसा ही यहाँ पर भी कहना चाहिए, यावत् भरत और ऐरवत इन दोनों क्षेत्रों में मनुष्य छहों ही कालों के अनुभाव को अनुभव करते हुए विचरते हैं। विशेष इतना है कि यहां वृक्ष दो हैं-कूटशाल्मली और महाधातकी वृक्ष / कूट शाल्मली पर गरुडकुमार जाति का वेणुदेव और महाधातकी वृक्ष पर प्रियदर्शन देव रहता है। ३३३--धायइसंडे णं दोवे दो भरहाई, दो एरवयाई, दो हेमवयाई, दो हेरण्णवयाई, दो हरिवासाई, दो रम्मगवासाई, दो पुनविदेहाई, दो प्रवरविदेहाई, दो देवकुरानो, दो देवकुरुमहदुमा, दो देवकुरुमहदुमवासी देवा, दो उत्तरकुरामो, दो उत्तरकुरुमहदुमा, दो उत्तर कुरुमहमवासी देवा / ३३४---दो चुल्लाहिमवंता, दो महाहिमवंता, दो णिसढा, दो गोलवंता, दो रुप्पी, दो सिहरी। ३३५-दो सहावाती, दो सद्दावातिवासी साती देवा, दो वियडावाती, दो वियडावातिवासी पभासा देवा, दो गंधावाती, दो गंधावातिवासी अरुणा देवा, दो मालवंतपरियागा, दो मालवंतपरियागवासी पउमा देवा। धातकीखण्ड द्वीप में दो भरत, दो ऐरवत, दो हैमवत, दो हैरण्यवत, दो हरिवर्ष, दो रम्यक वर्ष, दो पूर्व विदेह, दो अपर विदेह, दो देवकुरु, दो देवकुरु-महाद्र म, दो देवकुरु-महाद्र मवासी देव, दो उत्तर कुरु, दो उत्तर कुरुमहाद्र म और दो उत्तर कुरु महाद्र मवासी देव कहे गये हैं (333) / वहाँ दो चुल्ल हिमवान्, दो महाहिमवान्, दो निषध, दो नीलवान्, दो रुक्मी और दो शिखरी वर्षधर पर्वत कहे गये हैं (334) / वहाँ दो शब्दापाती, दो शब्दापाति-वासी स्वाति देव, दो विकटापाती, दो विकटापातिवासी प्रभासदेव, दो गन्धापाती, दो गन्धापातिवासी अरुणदेव, दो माल्यवत्पर्याय, दो माल्मवत्पर्यायवासी पद्मदेव, ये वृत्त वैताढ्य पर्वत और उन पर रहने वाले देव कहे गये हैं (335) / ___३३६-दो मालवंता, दो चित्तकड़ा, दो पम्हकडा, दो लणकडा, दो एगसेला, दो तिकडा, दो वेसमणकडा, दो अंजणा, दो मातंजणा, दो सोमणसा, दो विज्जुप्पभा, दो अंकावती, दो पम्हावतो, दो आसोविसा, दो सुहावहा, दो चंदपव्वता, दो सूरपवता, दो गागपव्वता, दो देवपक्वता, दो गंधमायणा, दो उसुगारपव्वया, दो चुल्लाहिमवंतकडा, दो वेसमणकडा, दो महाहिमवंतकडा, दो वेरुलियकडा, दो णिसढकूडा, दो रुयगकूडा दो गोलवंतकूढा, दो उवदंसणकूडा, दो रुप्पिकडा, दो मणिकंचणकूडा, दो सिहरिकूडा, दो तिगिछकूडा। धातकीषण्ड द्वीप में दो माल्यवान्, दो चित्रकूट, दो पद्मकूट, दो नलिनकट, दो एक शैल, दो त्रिकूट, दो वैश्रमण कुट, दो अंजन, दो मातांजन, दो सौमनस, दो विधु प्रभ, दो अंकावती, दो पद्मावती, दो पासीविष, दो सुखावह, दो चन्द्रपर्वत, दो सूर्यपर्वत, दो नागपर्वत, दो देवपर्वत, दो गन्धमादन, दो इषुकार पर्वत, दो चुल्ल हिमवत्कूट, दो वैश्रमण कूट, दो महाहिमवत्कूट, दो वैडूर्यकूट, दो निषधकूट, दो रुचक कूट, दो नीलवत्कूट, दो उपदर्शनकूट, दो रुक्मिकूट, दो माणिकांचन-कूट, दो शिखरि कूट, दो तिगिंछ कूट कहे गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org