________________ द्वितीय स्थान-द्वितीय उद्देश] [ 55 विवेचन-तीर्थंकरों के निष्क्रमण कल्याणक के समय पाकर उनके वैराग्य के समर्थक लोकान्तिक देवों का एक भेद मरुत् है। अन्तरालगति में एक कार्मण शरीर की अपेक्षा एक शरीर कहा गया है और भवधारणीय वैक्रिय शरीर के साथ कार्मणशरीर की अपेक्षा दो शरीर कहे गये हैं। अथवा भवधारणीय वैक्रिय शरीर की अपेक्षा एक और उत्तर वैक्रिय शरीर की अपेक्षा से दो शरीर बतलाए गए हैं। मरुत् देव को उपलक्षण मानकर शेष लोकान्तिक देवों के भी एक शरीर और दो शरीरों का निर्देश इस सूत्र से किया गया जानना चाहिए। इस प्रकार सूत्र 210 में यद्यपि किन्नर आदि तीन व्यन्तर देवों का और नागकुमार आदि चार भवनपति देवों का निर्देश किया गया है, तथापि इन्हें उपलक्षण मानकर शेष व्यन्तरों और शेष भवनपतियों को भी एक शरीरी और दो शरीरी जानना चाहिए / उक्त देवों के सिवाय शेष ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के एक शरीरी और दो शरीरी होने का निर्देश सूत्र 211 से किया गया है। द्वितीय उद्देश समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org