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________________ [ स्थानाङ्गसूत्र अवधिज्ञान से तिर्यक् लोक को जानता-देखता है। वैक्रिय आदि समुद्घात न करके भी आत्मा अवधि-ज्ञान से तिर्यक् लोक को जानता-देखता है / अधोवधि (नियत क्षेत्र को जानने वाला-परमावधि से नीचे का अवधिज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्धात करके या विना किये भी अवधिज्ञान से तिर्यक् लोक को जानता देखता है (194) / १९५-दोहि ठाणेहि पाया उडलोग जाणइ-पासइ, त जहा-समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्ढलोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ / आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोकं जाणइ-पासइ / दो प्रकार से आत्मा ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है -वैक्रिय आदि समुद्धात करके प्रात्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता-देखता है। वैक्रिय आदि समुद्घात न करके भी अात्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता देखता है। अधोवधि (नियत क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्घात करके, या किये विना भी अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता देखता है (165) / १९६-दोहि ठाणेहि पाया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, तं जहा–समोहतेणं चेव अप्पाणेणं प्राया केवलकप्पं लोग जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चे व अप्पाणेणं पाया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ / माहोहि समोहतासमोहतेणं च व अप्पाणेणं पाया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ / दो प्रकार से प्रात्मा सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है--वैक्रिय आदि समुद्घात करके आत्मा अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है / वैक्रिय आदि समुद्घात न करके भी आत्मा अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है / अधोवधि (परमावधि की अपेक्षा नियत क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्घात करके या किये बिना भी अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता-देखता है (196) / १९७-दोहि ठाणेहि प्राया अहेलोग जाणइ-यासइ, त जहा-विउवितेणं चव अप्पाणेणं आया आहेलोगं जाणइ-पासइ अविउन्वितेणं चेव अप्पणेणं पाया अहेलोगं जाणइ-पासइ / पाहोहि विउब्धियाविउवितेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ / दो प्रकार से प्रात्मा अधोलोक को जानता देखता है-वैक्रिय शरीर का निर्माण करने पर आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता--देखता है। वैक्रिय शरीर का निर्माण किये विना भी आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है। अधोवधि ज्ञानी वैक्रियशरीर का निर्माण करके या किये बिना भी अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है (197) / १९८-दोहि ठाणेहि प्राया तिरियलोग जाणइ-पासइ, तजहा-विउवितेणं च व अप्पाणणं आया तिरियलोग जाणइ-पासइ, अविउवितेणं च व अप्पाणेणं आया तिरियलोग जाणइ-पासइ। पाहोहि विउब्वियाविउवितेणं चैव अप्पाणेणं पाया तिरियलोग जाणइ-पासइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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