________________ द्वितीय स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 51 (भाषा पर्याप्ति से अपूर्ण)। इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (186) / पुनः नारक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं -सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि / इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (187) / पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं-परीत संसारी (जिनका संसार-वास सीमित रह गया है) और अनन्त संसारी (जिनके संसार-वास का कोई अन्त नहीं है)। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (188) / पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं--संख्येय काल स्थिति वाले और असंख्येय काल स्थिति वाले / इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वाण-व्यन्तर पर्यन्त सभी पञ्चेन्द्रिय दो भेद जानना चाहिए (848)(ज्योतिष्क और वैमानिक असंख्येय काल की स्थिति वाले ही होते हैं और एकेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रिय जीव संख्यात काल की स्थिति वाले ही होते हैं / ) पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं-सुलभ बोधि वाले और दुर्लभ बोधि वाले / इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (160) / पुनः नारक दो प्रकार के कहे गये हैं-कृष्णपाक्षिक और शुक्लपाक्षिक / इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त दो-दो भेद जानना चाहिए (161) / पुन: नारक दो प्रकार के कहे गये हैं-चरम (नरक में पूनः जन्म नहीं लेने वाले) और अचरम (नरक में भविष्य में भी जन्म लेने वाले) / इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों में दो-दो भेद जानना चाहिए (162) / अधोऽवधिज्ञान-दर्शन-पद १६३–दोहि ठाणेहि पाया आहेलोगं जाणइ-पासइ, त जहा-समोहतेणं चव अप्पाणेणं पाया अहेलोग जणइ-पासइ, असमोहतेण चव अपाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ / पाहोहि समोहतासमोहतेणं चे व अपाणेणं पाया अहेलोग जाणइ-पासइ / दो प्रकार से आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है (1) वैक्रिय आदि समुद्घात करके आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है। (2) वैक्रिय आदि समुद्धात न करके भी आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है। (3) अधोवधि (परमावधिज्ञान से नीचे के नियत क्षेत्र को जानने वाला अवधि ज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्घात करके या किये विना भी अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता-देखता है (193) / १९४--दोहि ठाणेहि प्राया तिरियलोग जाणइ-पासइ, त जहा-समोहतेणं चे व अप्पाणणं पाया तिरियलोग जाणइ-पासइ, असमोहतेणं च व अप्पाणेणं पाया तिरियलोगं जाणइ-पासइ / पाहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणणं पाया तिरियलोगं जाणइ-पासइ। दो प्रकार से प्रात्मा तिर्यक् लोक को जानता-देखता है-वैक्रिय आदि समुद्घात करके आत्मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org