________________ 48 सूत्रकृतांग-प्रथम अध्ययन-समय वादियों से अलग (एक किनारे) रहने वाले / पाशस्थ का अर्थ होता है-पाश (बन्धन) में जकड़े हुए की तरह कर्मपाश (कर्मबन्धन) में जकड़े हुए यहाँ 'पाशस्थ' रूप ही अधिक संगत लगता है। उबट्ठिया संता-अपने सिद्धान्तानुसार पारलौकिक क्रिया में उपस्थित (प्रवृत्त) होकर भी। ण ते दुक्ख विमोक्खया-वृत्तिकार के अनुसार अपने आपको संसार के दुःख से मुक्त नहीं कर पाते। चूर्णिकार ने ऽत्तदुक्खविमोक्खया' पाठ मानकर अर्थ किया है-अपनी आत्मा को संसार-दुःख से विमुक्त नहीं कर पाते। कहीं-कहीं 'ण ते दुक्खविमोयगा' पाठान्तर है, उसका भी वही अर्थ है / ' अज्ञानवाद-स्वरुप 33. जविणो मिगा जहा संता परिताणेण धज्जिता। असंकियाइं संकति संकियाई असंकिणो // 6 // 34. परियाणियाणि संकेता पासिताणि असंकिणो। __अण्णाणभयसंविग्गा संपलिति तहिं तहि // 7 // 35. अह तं पधेज्ज वज्झं अहे वज्झस्स वा वए। मुज्ज पयपासाओ तं तु मंदे ण देहती।। 8 // 36. अहियप्पाऽहियपण्णाणे विसमतेणुवागते / / से बद्ध पयपासेहिं तत्थ घायं नियच्छति // 6 // 37. एवं तु समणा एगे मिच्छद्दिट्ठी अणारिया। असंकिताइं संकति संकिताइं असंकिणो // 10 // 38. धम्मपण्णवणा जा सा तं तु संकति मूढगा। आरंभाई न संकति अवियत्ता अकोविया // 11 // 39. सव्वघ्पर्ग विउक्स्सं सम्वं मं विहूणिया। __ अप्पत्तियं अकम्मसे एयमढें मिगे चुए // 12 // 40. जे एतं णाभिजाणंति मिच्छद्दिट्ठी अणारिया। मिगा वा पासबद्धा ते घायमेसंतऽणंतसो // 13 // 41. माहणा समणा एगे सवे गाणं सयं वदे। सव्वलोगे वि जे पाणा न ते जाणंति किंचणं // 14 // 8 (क) सूत्रकृतांग चूणि (मूलपाठ टिप्पण) पृष्ठ 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org