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________________ परिशिष्ट 1: गाथाओं की अनुक्रमणिका गाथा सूत्राङ्क गाथा सूत्राङ्क 567 224 246 288 313 177 531 418 344 463 86 मिलक्खु अमिलक्खुस्स मुसावायं बहिन्द्ध च मुसं न बूया मुणि अत्तगामी मुहुत्ताणं मुहुतस्स राओ वि उठ्ठिया संता रागदोसाभिभूतप्पा रायाणो रायमच्चाय रुक्खेसु णाते जह मामली वा रुहिरे पुणो वच्चसमूसियंगे लद्ध कामे ण पत्थेज्जा लित्ता तिव्वाभितावेण लोगवायं निसामेज्जा वणंसि मूढस्स जहा अमूढा वणे मुढे जधा जंतू वस्थगंधमलंकारं वत्थाणि य में पडिलेहेहि वाहेण जहा व विच्छते विउटतेणं समयाणुसेटठे वित्त पसवो यातयो वित्त मोगरिया चेव विबद्धो णातिसंगेहि विरते गामधम्मेहि विरया वीरा समुटिठया विसोहियं ते अणुकाहयंते दुज्झमाणाण पाणाणं बुसिए य विगयगेही य वेतालिए नाम महभितावे वेतालियमग्गमागओ वेराई कुब्बती वेरी वेराणुगिद्धे णिचयं करेति सउणी जह पंसुगुडिया सएहि परियारह संकेज्ज याऽसंकितभाव भिक्खू 42 संखाय धम्मं च वियागरेंति 446 संखाय पेसलं धम्म 464 संखाय पेसलं धम्म 205 संडांसगं च फणिहं च 264 संतच्छणं नाम महब्भितावं 221 संतत्ता केसलोएण 166 संति पंच महन्भूता....आयछट्ठा 366 संति पंच महब्भूया""पुढवी 314 संतिमे तओ आयाणा 468 संघते साहुधम्म च 216 संपरागं णियच्छंति 80 संपसारी कयकिरिओ. 586 संबद्धसमकप्पा हु 45 संबाहिया दुक्कडिणो थणति 168 संवुज्झमाणे तु गरे मती म 283 संबुज्झह किं न बुज्झह 147 संबुज्झहा जंतवो माणुसत्त' 587 संलोकणिज्जमणगारं 158 संवच्छर सुविणं लक्खणं च 5 संवुडकम्मस्स भिक्खुणो 162 संवुडे से महापणे 526 संवुडे से महापण्णे 100 सच्चं असच्चं इति चितयंता 556 सत्थमेगे सुसिक्खंति 516 सदा कसिणं पुण घम्मठाण 85 सदा कमिण पुण धम्मठाणं 343 सदा जलं ठाण निहं महंत 110 सदाजला नाम नदी मिदुग्गा 417 सदा दत्त सणा दुक्खं 481 सद्दाणि सोच्चा अदु भेरवाणि 103 सद्दे सु स्वेसु असज्जमाणे 68 सपरिमाहा य सारंभा 601 सम अन्नयरम्मि संजमे 276 506 534 537 414 320 3 347 170 x 78 114 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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