________________ समाही : दसम अज्झयणं समाधि : दशम अध्ययन समाधिप्राप्त साधु की साधना के म लमन्त्र-- 473 आघं मइमं अणुवीति धम्म, अंजू समाहि तमिणं सुणेह / अपडिपणे भिक्खू तु समाहिते, अणिराणभूते सुपरिन्धएज्जा // 1 // 474. उड्ढं अहे य तिरियं दिसासु, तसा य जे यावर जे य पाणा। ___हत्थेहि पाएहि य संजमेत्ता, अदिण्णमन्न सु य नो गहेजा // 2 // 475. सुअक्खातधम्मे वितिगिच्छतिग्णे, लाढे चरे आयतुले पयासु / आयं न कुज्जा इह जीवियट्ठो, चयं न कुज्जा सुतवस्सि भिक्खू // 3 // 476. सबिदियऽभिनिम्बुडे पयासु, चरे मुणो सम्वतो विप्पमुक्के / पासाहि पाणे य पुढो वि सते, दुक्खेण अट्टे परिपच्चमाणे // 4 // 477. एतेस बाले य पकुब्वमाणे, मावदृती कम्मसु पावएसु / अतिवाततो कीरति पावकम्म, निउंजमाणे उ करेति कम्मं // 5 // 478. आवीणभोई वि करेति पावं, मंता तु एगंतसमाहिमाहु। बुद्ध समाहीय रते विवेगे, पाणातिपाता विरते ठितप्पा // 6 // 476. सम्वं जगं तू समयाणपेही, पियमप्पियं कस्सइनो करेज्जा। उट्ठाय दोणे तु पुणो विसण्णे, संपूयणं चेव सिलोयकामी // 7 // 480. आहाकडं चेव निकाममोणे, निकामसारी य विसण्णमेसी। इत्थोसु सत्ते य पुढो य बाले, परिग्गहं चेव पकुवमाणे // 8 // 481. वेराणुगिद्ध णिचयं करेति, इतो चुते से दुहमठ्ठदुग्गं / तम्हा तु मेधावि समिक्ख धम्म, चरे मुणी सव्वतो विप्पमुक्के / / 6 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org