________________ गाथा 447 से 46. 363 448. धोयणं रयणं चेव, वत्थीकम्म विरेयणं / वमणंजण पलिमंथं तं विज्जं परिजाणिया॥१२॥ 446. गंध मल्ल सिणाणं च, दंतपक्खालणं तहा। परिग्गहित्यि कम्मं च, तं विज्जं परिजाणिया // 13 // 450. उद्देसियं कोयगडं, पामिच्च चेव आहडं / पूर्ति अणेसणिज्जं च, तं विज्ज परिजाणिया॥ 14 // 451. आसूणिमक्खिरागं च, गिद्ध वधायकम्मगं / उच्छोलणं च कक्कं च, तं विज्ज परिजाणिया // 15 // 452. संपसारी ककिरिओ, पसिणायतणाणि य / सागारियपिडं च, तं विज्जं परिजाणिया / / 16 / / 403. अट्टापदं ण सिक्खेज्जा, वेधादीयं च णो वदे। हत्थकम्मं विवादं च, तं विज्जं परिजाणिया // 17 // 454. पाणहाओ य छत्तं च, णालियं वालवीयणं / परकिरिय अन्नमन्न च, तं विजं परिजाणिया // 18 // 455. उच्चारं पासवणं, हरितेसु ण करे मुणी। वियडेण वा वि साहटु, णायमेज्ज कयाइ वि // 16 // 456. परमत्त अन्नपाणे च, ण भुजेज्जा कयाइ वि / परवत्थमचेलो वि, तं विज्जं परिजाणिया / / 20 / / 457. आसंदी पलियंके य, णिसिज्जं च गिहतरे / संपुच्छणं च, सरणं च तं विज्ज परिजाणिया / / 21 // 458. जसं कित्ति सिलोगं च, जा य वंदणपूयणा। सव्वलोयंसि जे कामा, तं विजं परिजाणिया // 22 // 456. जेणेहं णिध्वहे भिक्खू, अन्न-पाणं तहाविहं / अणुप्पदाणमन्ने सि, तं विज्जं परिजाणिया // 23 / / 460. एवं उदाह निग्गंथे, महावीरे महामुणी। अणतणाणदंसी से, धम्म देसितवं सुतं / / 24 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org