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________________ सूत्रकृतांग : तृतीय अध्ययन-उपसर्गपरिज्ञा रामगुत्त-रामपुत्त-इसिभासियाई (ऋषिभाषित) के रामपुत्तिय नामक २३वें अध्ययन में रामपुत्त नाम मिलता है / वृत्तिकार के अनुसार रामगुप्त एक राजपि थे। बाहुक-आहेतऋषि -इसिभासियाइं के १४वें बाहुक अध्ययन में बाहुक को आहतऋषि कहा गया है / महाभारत के तीसरे आरण्यकपर्व में नल राजा का दूसरा नाम 'बाहुक' बताया गया है, पर वह तो राजा का नाम है। तारागण-तारायण या नारायण ऋषि-इसिभासियाई के ३६वें तारायणिज्ज नामक अध्ययन में तारायण या तारागण ऋषि का नामोल्लेख आता है। आसिल (असित ?) देविल (देवल) ऋषि-वृत्तिकार ने असिल और देविल दोनों अलग-अलग नाम वाले ऋषि माने हैं। किन्तु 'इसिभासियाई' के तृतीय दविल अध्ययन में असित दविल आर्हतऋषि के रूप में एक ही ऋषि का नामोल्लेख है / सूत्रकृतांग चूणि का भी यही आशय प्रतीत होता है। महाभारत में भी तथा भगवद्गीता में आसित देवल के रूप में एक ही नाम का कई जगह उल्लेख है। इस पर से ऋषि का देवल गोत्र और असित नाम प्रतीत होता है। वायुपुराण के प्रथम खण्ड में ऋषिलक्षण के प्रकरण के अनुसार असित और देवल ये दोनों पृथक्-पृथक् ऋषि मालूम होते हैं। दीवायण महारिसी और पारासर-इसिभासियाई के ४०वें 'दीवाणिज्ज' नामक अध्ययन में द्वीपायन ऋषि का नामोल्लेख मिलता है, वहाँ पाराशर ऋषि का नामोल्लेख नहीं है / महाभारत में 'पायन' ऋषि का नाम मिलता है। व्याम, पाराशर (पराशर पुत्र) ये द्वैपायन के ही नाम हैं। ऐसा वहाँ उल्लेख है। वृत्तिकार ने द्वैपायन और पाराशर इन दोनों का पृथक्-पृथक् उल्लेख किया है। इसी तरह औपपातिक HI देखिये सुसपिटक चरियापिटक पालि, निमिराज चरिया (पृ० 360) में "पुनापरं यदा होमि मिथिलायं पुरिसुत्तमे। निमि नाम महाराजा, पण्डितो कुसलस्थिको // 1 // तदाहं मापयित्वा न चतुस्सालं चतुम्मुखं / तत्थ दानं पवसीसि मिगपक्खिनरादिनं / 2 // " IHI देखिए-उत्तराध्ययन नमि पविज्जा अध्ययन 9 में तओ न मि रायरिसी देविदं इण मधवी 3 रामगुत्ते-(1) इतिभासियाई अ०१३ रामपत्तिय अध्ययन देखिये / (II) राम गुप्तश्च राजर्षिः -वृत्तिकार शीलांकाचार्य 4 इसिभासियाई में 14 वाँ अध्ययन बाहकज्झयणं देखिये। 5 इसिभासिघाई में 36 तोतारायणिज्जज्झयणं देखिये। 6 (क) (1) इसिभासियाई में तीसरे दविलज्झयणं में- "असिएण दविलेणं अरहना इसिणा बुइतं / " (II) आसिलो नाम महषिः देविलो छैपायनश्च तथा पाराशराख्यः।। -~~-भीला. वृत्ति (III) असितो देवलो व्यास: स्वयंचव ब्रदीप मे // --भगवद्गीता अ० 10/13 (IV) वायुपुराण में ऋषि लक्षण में काश्यपश्चैव वस्मारो विभ्रमोरेभ्य एव च / असितो देवलश्चैव षडेते ब्रह्मवादिनः / / (v) देवलस्त्वसितोऽब्रवीत् (महा. भीष्म पर्व 616416) "मारवस्य च संवादं देवलस्यासितस्य च / " (शान्ति पर्व 12 / 26711) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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