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________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध (ख) सूत्र 166 में-असणं वा, पाणं वा, खाइम वा साइमं बा आदि। , 'से भिक्खु वा 2' संक्षिप्त कर दिया गया है। इसी प्रकार 'असणं वा 4 जाव' या 'असणं वा 4' संक्षिप्त करके आगे के सूत्रों में संकेत किये गये हैं। (ग) पुनरावृत्ति-कहीं-कहीं '2' का चिन्ह द्विरुक्ति का सूचक भी हुआ है—जैसे सूत्र 360 में 'पगिज्झिय 2' उद्दिसिय 2' इसका संकेत है---पगिज्झिय पगिज्झिय 'उद्दिसिय उद्दिसिय'। अन्यत्र भी यथोचित ऐसा समझें। क्रियापद के आगे '2' का चिन्ह कहीं क्रियाकाल के परिवर्तन का भी सूचन करता है, जैसे स्त्र 357 में—'एगंतमवक्कमेज्जा 2' यहाँ 'एगंतमबक्कमेज्जा. 'एगंतमक्क्कमेत्ता' पूर्वकालिक क्रिया का सूचक है। क्रियापद के आगे '3' का चिन्ह तीनों काल के क्रियापद के पाठ का सूचन करता है, जैसे सूत्र 362 में 'हचिसु वा 3' यह संकेत--रुचिसु वा रुचंति वा रुचिस्संति वा' इस कालिक क्रियापद का सूचक है। ऐसा अन्यत्र भी समझना चाहिए' इसके अतिरिक्त 'तहेव'-(अक्कोसंति वा तहेव:-सूत्र 618) (अतिरिच्छछिण्णं तहेव;---सत्र 626) एवं-(एवं यन्वं जहा सद्दपडिमा;-सूत्र 686) जहा—(पाणाई जहा पिडेसणाए--सूत्र 554) तं चैव-तं चेव जाव अण्णोण्णसमाहीए-सूत्र 457) आदि संकेत पद भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होते हैं। इन सबको यथास्थान शुद्ध अन्वेषण करके समझ लेना चाहिए। -सम्पादक संक्षिप्त संकेतित सूत्र 577, 578 525 . 446, 51% 471 371, 575, 612 332, 335, 360 377, 378, 360, 404, 405 556 414-418 335, 337 जाव पद ग्राह्य पाठ अंतलिक्खजाते जाव अकिरियं जाव अक्कोसंति वा जाव अक्कोसेज्ज वा जाव अणंतरहिताए पुढवीए"जाव असणिज्ज.."जाव समग्र पाठ युक्त मूल सूत्र-संख्या 576 524 422 422 353 332 23 अपुरिसंतरकडे जाब अपुरिसंतरकडं वा जाव अपुरिसंतरगडं वा जाव अप्पंडा जाव अप्पंडे जाव 348, 468 404 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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