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________________ // चउत्था चूला // सोलस अज्झयणं 'विमुत्ती' विमुक्ति : सोलहवां अध्ययन अनित्य भावना-बोध 763. अणिच्चमावासमुति जंतुणो, पलोयए सोच्चमिदं अणुत्तरं / विओसिरे' विष्णु अगारबंधणं, अभीरु आरंभपरिग्गहं चए // 135 // 763. संसार के समस्त प्राणी मनुष्यादि जिन योनियो में जन्म लेते है, अथवा जिन शरीर आदि में आत्माएँ आवास प्राप्त करती हैं, वे सब स्थान अनित्य हैं / सर्वश्रेष्ठ (अनुत्तर) मौनीन्द्र प्रवचन मे कथित यह वचन सुनकर उस पर अन्तर की गहराई से पर्यालोचन करे / तथा समस्त भयों से मुक्त बना हुआ विवेकी पुरुष आगारिक (घरबार के) बन्धनों का व्युत्सर्ग कर दे, एवं आरम्भ (सावध कार्य) और परिग्रह का त्याग कर दे। विवेचन:--अनित्यत्व भावनाः आरम्भ परिग्रहादि त्याग प्रेरक प्रस्तुत सूत्र में संसार या प्राणियों के आवासरूप शरीरादि स्थानों को अनित्य जानकर विविध बन्धनों और आरम्भपरिग्रह का त्याग करने की प्रेरणा दी गई है। "अणिच्चमावासमुति जंतवो' को व्याख्या--मनुष्य आदि भव (जन्म) में वास, या उस-उस शरीर में वास अनित्य है अथवा सारा ही संसारवास अनित्य है, जिसे सांसारिक जीव प्राप्त करते हैं / तात्पर्य यह है कि चारों गतियों में जिन-जिन योनियों में जोव उत्पन्न होते हैं, वे सब अनित्य है।" इस अनुत्तर जिनवाणी को सुनकर विवेकशील पुरुष उस पर पूर्णतया पर्यालोचन करे, कि भगवान् का कथन यथार्थ है। __अनित्यता क्यों है ? इसका समाधान दिया गया है—देवों की जैसी चिरकालस्थिति है, बैसी मनुष्यों की नहीं है। मनुष्यायु अल्पकालीन स्थिति वाली है। संसार को केले के गर्भ की तरह निःसार जानकर विद्वान अगार-बन्धन=पुत्र-कलत्र धन-धान्य-गृहादिरूप गृहपाश अथवा चूर्णिकार के अनुसार स्त्री और गृहरूप आगारबन्धन का त्याग करे।' "अभीरु आरंभ-परिग्गहं चए" : व्याख्या--इसके अतिरिक्त निर्भीक सप्तत्रिधभत्र रहित एवं परीषहों और उपसर्गों से नहीं घबराने वाला साधु आरम्भ - सावध कार्य और परिग्रह-बाह्य 1. विओसिरे के बदले पाठान्तर है--वियोसिरे। 2. परिग्गहचए के बदले पाठान्तर है-परिग्गहं चये, परिग्गहं वा / 3. (क) आचांराग चूणि मू० पा० टि० पृ० 264 (ख) आचारोग वृत्ति पत्रांक 426 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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