________________ 412 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध निरूपित की गई हैं। यात्रीशालाओं आदि में ठहरते समय क्षेत्र-काल की 'मर्यादा का विचार करके उनके स्वासी या स्वामी द्वारा नियुक्त अधिकारी से अवग्रह की याचना करे, सदा अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहणशील साधक धास, ढेला, राख, सकोरा, उच्चार के स्थान आदि अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण करके प्राप्त करता है / जितने अवग्रह की अनुज्ञा ली हो, उतना ही कल्पनीय होता है / संघाड़े के साधुओं आदि से अनुज्ञा लेकर वस्तुओं का रत्नाधिक (छोटे-बड़े) क्रम के अनुसार उपभोग करे, गमनादि करे / सार्मिकों से अवग्रह-याचना करके वहाँ ठहरे, शयनादि करे।' चतुर्थ महाव्रत और उसको पांच भावनाएं 786. अहावरं चउत्थं (भंते !) महत्वयं 'पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं / से दिवं वा माणुसं वा तिरिक्खजोणियं वा णेव सयं मेहुणं गच्छे (ज्जा), तं चेव, अदिण्णादाणवत्तवया भाणितव्वा जाव वोसिरामि'। 787. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति– (1) तत्थिमा पढमा भावणा-णो णिग्गंथे अभिक्खणं 2 इत्थीणं' कहं कहइत्तए सिया। केवली बूया-निग्गंथे णं अभिक्खणं 2 इत्थोणं कहं कहेमाणे संतिभेदा संतिविभंगा सतिकेवलिपण्णत्तातो धम्मातो भंसेज्जा। णो निग्गंथे अभिक्खणं 2 इत्थीणं कहं कहेइ (त्तए) सिय त्ति पढमा भावणा। (2) अहावरा दोच्चा भावणा--णो जिग्गंथे इत्थीणं मणोहराइं२° इंदियाइं आलोइत्तए णिज्झाइत्तए सिया। केवली बूया-निग्गंथे णं (इत्थीणं) मणोहराई 2 इंदियाई आलोएमाणे णिज्झाएमाणे संतिभेदा संतिविभंगा जाव धम्मातो भंसेज्जा, णो णिग्गंथे इत्थोणं मणोहराई 2 इंदियाई आलोइत्तए णिज्झाइत्तए सिय त्ति दोच्चा भावणा / (3) अहावरा तच्चा भावणा—णो णिग्गथे इत्थीणं पुव्वरयाई पुग्वकोलियाई सुमरित्तए सिया / केवली बूया-निग्गंथे णं इत्थीणं पुवरयाई पुव्वकोलियाई सरमाणे संतिभेदा जाव विभंगा जावं भंसेज्जा / णो णिग्गंथे इत्थीणं पुज्वरयाई पुवकोलियाइं सरित्तए सिय ति तच्चा भावणा। 1. आचारांग चूणि मू० पा० टि० पृ. 285 2. 'पच्चक्खामि' के बदले पाठान्तर है---"पच्चाइक्खामि' / " 3. 'इथोणं कहकह इत्तए' के बदले पाठान्तर है- "इत्थीकधकह इत्तए, इत्थीणं कहकहत्तिए। 4. किसी-किसी प्रति में 'अभिक्खणं' पद नहीं है। 5 णो जिग्गंथे....... सियत्ति' पाठ के स्थान पर पाठान्तर है. तम्हा णो निग्गंथे इत्थिोणं कहं कहेज्जा।" 6. 'कहइ(त्तए) सियति' के बदले पाठान्तर है-कहे सिय...'कहेइ सिय ति बेमि पढमा / " 7. मणोहराई के आगे 2 का अंक मणोरमाइपद का सूचक है। 8. जाव भंसेज्जा के बदले पाठान्तर हैं—'जाद भासेज्जा, 'जाव आभंसेज्ज जा भंसेज्जा।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org