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________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र 778-76 401 [2] अहावरा दोच्चा भावणा-पणं परिजाणति से णिग्गंथे, जे य मणे पावए सावज्जे सकिरिए अण्हयकरे छेदरे भेदकरे अधिकरणिए पादोसिए पारिताविए पाणातिवाइए' भूतोवघातिए तहप्पगारं मणं णो पधारेज्जा। मणं परिजाणति से णिग्गंथे, जे य मणे अपावए त्ति दोच्चा भावणा। [3] अहावरा तच्चा भावणा-वई परिजाणति से णिग्गंथे, जा य वई पाविया सावज्जा सकिरिया जाव भूतोवघातिया तहप्पगारं वई णो उच्चारेज्जा / जे वइं परिजाणति से णिग्गंथे जा य वह अपाविय त्ति तच्चा भावणा। [4] अहावरा चउत्था भावणा-आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिते से णिग्गंथे, जो अणादाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिते / केवली बूया-आदाणभंडनिक्खेवणाअसमिते से णिग्गंथे पाणाई भताई जीवाई सत्ताई अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज वा। तम्हा आयाणभंडणिक्खेवणासमिते से णिग्गंथे, जो अणादाणभंडणिक्खेवणासमिते त्ति चउत्था भावणा। [5] अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाण-भोयणभोई से णिग्गंथे, जो अणालोइयपाण भोयणभोई / केवली बूया-अणालोइयपाण-भोयणभोई से णिग्गंथे पाणाणि' या भूताणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज वा / तम्हा आलोइयपाण-भोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइयपाण-भोयणभोई त्ति पंचमा भावणा। 776. एताव ताव महत्वयं (ए) सम्म काएण फासिते पालिते तोरिए किट्टिते अवट्ठिते आणाए आराहिते यावि भवति / पढमे भंते ! महव्वए पाणाइवातातो वेरमणं / 778. उस प्रथम महावत की पांच भावनाएं होती हैं (1) उसमें से पहली भावना यह है निर्ग्रन्थ ईर्थासमिति से युक्त होता है, ईर्यासमिति से रहित नहीं। केवली भगवान् कहते हैं-ईर्यासमिति से रहित निर्ग्रन्थ प्राणी, भूत, जीव, और सत्त्व का हनन करता है, धूल आदि से ढकता है, दबा देता है, परिताप देता है, चिपका देता है, या पीड़ित करता है / इसलिए निम्रन्थ ईर्यासमिति से युक्त होकर रहे, ईर्यासमिति से रहित हो कर नहीं / यह प्रथम भावना है। (2) इसके पश्चात् दूसरी भावना यह है -मनको जो अच्छी तरह जानकर पापों से 1. 'पाणातिवाइए' के बदले पाठान्तर है.- 'पाणातिवाते', 'पाणातिवातं / ' 2. 'पधारेज्जा' के बदले पाठान्तर है--'पहारेज्जा / ' 3. 'अपाविय' के बदले पाठान्तर है-'पाविय' 'अपाविय।' 4. 'आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिते' के बदले पाठान्तर है—आयाणभडनिक्खवणासमिए।' अणादाणभडमत्तनिक्खेवणासमिते' के बदले पाठान्तर है--'नो आयाणभड निक्खेवणाअसमिए।" 6. 'पाणाणि' के बाद भूयाणि आदि के बदले इस प्रकार के पाठान्तर मिलते हैं—'पाणाणि वा सत्ताणि वा अभि / पाणाइ वा जीवाणि वा अभिहणेज्ज"। 7. 'एत्ताव ताव महब्वयं' के बदले पाठान्तर है—'एताव ताव महब्वए' 'एत्तावता महव्वतं / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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