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________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र 778 लोक में स्थित सब जीवों के समस्त भावों को तथा समस्त परमाणु पुद्गलों को जानते-देखते हुए विचरण करने लगे। 7.4. जिस दिन श्रमण भगवान महावीर को अज्ञान-दुःख-निवृत्तिदायक सम्पूर्ण यावत् अनुत्तर केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न हुआ, उस दिन भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं विमानवासी देव और देवियों के आने-जाने से एक महान् दिव्य देवोद्योत हुआ, देवों का मेलासा लग गया, देवों का कल-कल नाद होने लगा, वहाँ का सारा आकाशमंडल हलचल से व्याप्त हो गया। विवेचन ---भगवान् को केवलज्ञान की प्राप्ति और उसका महत्त्व- प्रस्तुत सूत्रत्रय में भगवान् को प्राप्त हुए केवलज्ञान का वर्णन है। इन तीनों सूत्रों में मुख्यतया तीन बातों उल्लेख का किया गया है (1) केवलज्ञान कब, कहाँ, कैसी स्थिति में, किस प्रकार का प्राप्त हुआ ? (2) केवलज्ञान होने के बाद भगवान् किसरूप में रहे, किन गुणों से और किन उपलब्धियों से युक्त बने। (3) भगवान् के केवलज्ञान केवलदर्शन का सभीप्रकार के देवों पर क्या प्रभाव पड़ा ?' राजप्रश्नीय सूत्र के अन्तिम सूत्र में इसी तरह का पाठ मिलता है / कल्पसूत्र में भी हूबहू इसी प्रकार का पाठ उपलब्ध है। केवलज्ञान साधक-जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। केवलज्ञान होने पर अन्दरबाहर सर्वत्र उसके प्रकाश से भूमण्डल जगमगा उठता है। आत्मा का पूर्ण विकास हो जाता है, आत्मा विशुद्ध निर्मल और निष्कलुष बन जाता है। चार घाती कर्म तो सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं / साधक अब स्वयं पूर्ण ज्ञानी, सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान् बन जाता है / 'कट्ठकरणसि' आदि पदों का अर्थ--'कट्ठकरणं = काष्टकरण नामक एक क्षेत्र / भुत्तं-पोतं = खाया हुआ, पीया हुआ / आवीकम्मं = प्रकट में किया हुआ कर्म / रहोकम्म = गुप्त कार्य, एकान्त में किया हुआ कर्म / मणोमाणसियं = मन के मानसिक भाव। णेष्वाणे = निर्वाण या अज्ञानदुःख-निवृत्ति / 1. आचारांग मूलपाठ के टिप्पण 10 277 / 2. "नएणं से भगवं अरहा जिणे "जाणिहिइ "तक कई मणोमाणसियं खइमं भत्तं पडिसेवियं आवीकम्म रहोकम्म अरहा अरहस्सजोगे तंतं मणवायकायजोगे बद्रमाणाणं सव्वलोए सम्बजीवाणं सब्वभाए जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सह।" राजप्रश्नीय अन्तिम सत्र पाठ, (ख) कल्पसूत्र पाठ मू० 12 3. (क) पाइअ-सद्दमहण्णवो पृ० 215 / (ख) अर्थागम खण्ड-१ (आचारांग) पृ० 158-156 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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