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________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र 746 समस्त साधनों का सर्वथा परित्याग करके आत्मशुद्धिपूर्वक शरीर छोड़ा, और 12 वाँ देवलोक प्राप्त किया, जहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बनेंगे। दीक्षा-ग्रहण का संकल्प 746. तेणं कालेणं तेणं समएणं समण भगवं महावीरे जाते णातपुत्ते णायकुलविणिन्वते विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाइ विदेहे त्ति कट्ट, अगारमझे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगतेहिं देवलोगमणुप्पत्तेहि समत्तपइण्णे चेच्चा हिरण्णं, चेच्चा सुवण्णं चेच्चा बलं. चेच्चा वाहणं, चेच्चा धण-कणग-रयण-संतसारसावतेज्जं, विच्छड्डित्ता विग्गोवित्ता, विस्साणित्ता, दायारेसु णं वायं पज्जाभाइत्ता, संवच्छरं दलइत्ता, जे से हेमंताणं पढमे मासे, पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले, तस्स णं मम्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तराहि णक्खतेणं जोगोवगतेणं अभिनिक्खमणाभिप्पाए यावि होत्था। 746. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर, जो कि ज्ञातपुत्र के नाम मे प्रसिद्ध हो चुके थे, ज्ञातकुल (के उत्तरदायित्व) से विनिवृत्त थे, अथवा ज्ञातकुलोत्पन्न थे, देहासक्ति रहित थे, विदेहजनों द्वारा अर्चनीय पूजनीय थे, विदेहदत्ता (माता) के पुत्र थे, विशिष्ट शरीर-वज्रऋषभ-नाराच-संहनन एवं समचतुरस्र संस्थान से युक्त होते हुए भी शरीर से सुकुमार थे। (इस प्रकार की योग्यता से सम्पन्न) भगवान् महावीर तीस वर्ष तक विदेह रूप में गृह में निवास करके माता-पिता के आयुष्य पूर्ण करके देवलोक को प्राप्त हो जाने पर अपनी ली हुई प्रतिज्ञा के पूर्ण हो जाने से, हिरण्य. स्वर्ण, सेना (बल), वाहन (सवारी), धन, धान्य, रत्न आदि सारभूत, सत्वयुक्त पदार्थों का त्याग करके, याचकों को यथेष्ट दान देकर, अपने द्वारा दानशाला पर नियुक्त जनों के समक्ष सारा धन खुला करके, उसे दान रूप में देने का विचार प्रगट करके, अपने सम्बन्धियों में सम्पूर्ण पदार्थों का यथायोग्य (दाय) विभाजन करके, संवत्सर (वर्षी) दान देकर (निश्चिन्त हो चुके, तब) हेमन्तऋतु के प्रथम मास एवं प्रथम मार्गशीर्ष 1. 'णातपुत्त' के बदले पाठान्तर है --'णातिपुत्ते'। 2. कल्पसूत्र में भगवान के द्वारा दीक्षा की पूरी तैयारी का वर्णन इस प्रकार मिलता है----'समणे भगवं महावीर दक्खे दक्खपतिन्ने, पडिरूवे आलीणे भद्दए विणीए नाए नायपुत्ते नायकुलचंदे विदेह विदेहदिन्ने विबेहजच्चे विदेहसमाले तीसं वासई विदेहसि कट्ट अम्मापिई हि देवत्तमएहिं गुरुमहत्तगरहि अब्भणुन्नाए"" कल्पसून सूत्र-११० 3. 'गायकुल-विणिव्वते' के बदले पाठान्तर है--णायकुलविणिवत्ते, णायकुलनिव्वते, णायकुलणिवत्ते ति विदेहे। 4. इसके बदले किसी-किसी प्रति 'विदेहित्ति' 'विदेहत्ति' पाठान्तर हैं। कल्पसूत्र में 'विदेहसि कट्ट 5. 'धणकणग' के बदले पाठान्तर है—धणधण्णक / अर्थ है-धन और धान्य / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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