________________ पन्द्रहवां अध्ययन : सूत्र 735 367 कुण्डपुर सन्निवेश से उत्तर क्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश में (आकर वहां देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से गर्भ को लेकर) ज्ञातवंशीय क्षत्रियों में प्रसिद्ध काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ राजा की वाशिष्ठगोत्रीय पत्नी त्रिशला (क्षत्रियाणी) महारानी के अशुभ पुद्गलों को हटा कर उनके स्थान पर शुभ पुद्गलों का प्रक्षेपण करके उसकी कुक्षि में उस गर्भ को स्थापित किया / और जो त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में जो गर्भ था, उसे लेकर दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश में कुडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की जालन्धर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में स्थापित किया। आयुष्मन् श्रमणो ! श्रमण भगवान् महावीर गर्भावास में तीन ज्ञान (मति-श्रु त-अवधि) से युक्त थे / 'मैं इस स्थान से संहरण किया जाऊँगा', यह वे जानते थे, 'मैं संहृत किया जा चुका हूँ', यह भी वे जानते थे और यह भी वे जानते थे कि 'मेरा संहरण हो रहा है।' विवेचन.... गर्म की अदला-बदली--प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर के गर्भ को देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से निकाल कर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में रखने और त्रिशला महारानी के कुक्षिस्थ गर्भ को देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में स्थापित करने का वर्णन है / कल्पसूत्र में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन है:-देवानन्दा के स्वप्नदर्शन, स्वप्न-फल-श्रवण, हर्षाविष्करण, इधर शकेन्द्र का चिन्तन, भगवान् की स्तुति, इस आश्चर्यजनक घटना पर पुनः चिन्तन एवं कर्तव्यविचार, हरिणगमेषीदेव का आह्वान, इन्द्र द्वारा आदेश, हरिणगमेषी देव द्वारा गर्भ की अदलाबदली तक का वर्णन विस्तार के साथ है, यहाँ उभे अति संक्षेप में दिया गया है।' ___ गर्मापहरण की घटना : शंका-समाधान-तीर्थकरों के गर्भ का अपहरण नहीं होता, इस दृष्टि से दिगम्बर परम्परा इस घटना को मान्य नहीं करती, किन्तु श्वेताम्बर परम्परा इसे एक आश्चर्यभूत एवं सम्भावित घटना मानती है। आचारांग में ही नहीं, स्थानांग, समवायांग, आवश्यकनियुक्ति एवं कल्पसूत्र प्रभृति में स्पष्ट वर्णन है कि श्रमण भगवान् महावीर 82 रात्रि व्यतीत हो जाने पर एक गर्भ से दूसरे गर्भ में ले जाए गये। भगवती सूत्र में भगवान् महावीर ने गणधर गौतम स्वामी से देवानन्दा ब्राह्मणी के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख किया है"गौतम ! देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है / "2 वैदिक परम्परा के मूर्धन्य पुराण श्रीमद् भागवत में भी गर्भ-परिवर्तन विधि का उल्लेख है कि कंस जब वसुदेव की सन्तानों को समाप्त कर देता था, तब विश्वात्मा योगमाया को आदेश देता है कि देवकी का गर्भ रोहिणी के उदर में रखे / विश्वात्मा के आदेश-निर्देश में 1. देखें कल्पसूत्र मूल (सं० देवेन्द्र मुनि) 2. (क) समवायांग 83, पत्र 832 (ख) स्थानांग स्था० 5, पत्र 307 (ग) आवश्यक नियुक्ति पृ० 80-83 (घ) 'गोयमा ! देवाणंदां माहणी मम अम्मगा'- भगवती शतक 5 उ० 33 पृ० 256 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org