________________ द्वादश अध्ययन : सूत्र 686 341 उत्कण्ठापूर्वक रूप दर्शन से हानियां(१) रूप एवं दृश्य देखने की लालसा तीन हो जाती है, (2) मनोज्ञ रूप पर राग और अमनोज्ञ पर द्वेष पैदा होता है, (3) साधक में अजितेन्द्रियता बढ़ती है, (4) स्वाध्याय, ध्यान आदि से मन हट जाता है, (5) पतंगे की तरह रूप लालसा ग्रस्त व्यक्ति अपनी साधना को चौपट कर देता है, (6) नैतिक एवं आध्यात्मिक पतन हो जाता है। (7) रूपवती सुन्दरियों एवं सुन्दर सुरूप वस्तुओं को प्राप्त करने की लालसा जागती गंथिमाणि आदि शब्दों को व्याख्या-गंथिमाणि--गंथे हुए फूल आदि से बने हुए स्वस्तिक आदि / वेढिमाणि = वस्त्रादि से बनी हुई पुतली आदि वस्तुएं। पूरिमाणि - जिनके अन्दर कुछ भरने से पुरुषाकार बन जाते हैं, ऐसे पदार्थ / संघाइमाणि =अनेक एकत्रित वर्षों से निर्मित चोलक आदि, चंक्खुदंसणपडियाए' = आँखों से देखने की इच्छा से। // बारहवाँ अध्ययन, रूप सप्तक समाप्त / / 1. आचारांग वृत्ति पत्रांक 415 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org