________________ दशम अध्ययन : सूत्र 646-67 जगह-चर्या, द्वार, गोपुर, प्राकार आदि स्थानों में मल-मूत्र-विसर्जन करने गे लोग या राज कर्मचारी ताड़न आदि करते हैं।' चूणिसम्मत अतिरिक्त पाठ और उसकी व्याख्या-सूत्र 660 का चूर्णिकार सम्मत पाठ बहुत अधिक है, जो यहां मूल में उपलब्ध नहीं है / उसकी चूर्णिकार-कृत व्याख्या इस प्रकार हैदगमग्गो = नाली या जल बहने का मार्ग / दगपहो =पनिहारिनों के पानी लेने जाने-आने का मार्ग / सुन्न गार-सूना घर / भिन्नागारं = टूटा जीर्ण-शीर्ण मकान, खण्डहर / कूडागार मंत्रणागृह / कोट्ठागारं अनाज का कोठार, गोदाम / जाणसाला-गाड़ी, रथ आदि रखने की शाला। वाहणसाला-बैल, घोड़े आदि के बाँधने का स्थान / तृणसालाघास-चारा रखने का स्थान / तुससाला=कुम्भार आदि जहाँ तुस (जौ, गेहूँ आदि ) रखते हैं / भुससाला पराल आदि धास से भरी शाला / गोमयसाला= गोबर, कंडे आदि का स्थान / महाकुलं राजा का महल / महागिहरावल आदि अथवा अधिकारियों का घर, अथवा स्त्रियों के लिए बना हुआ विशाल शौचालय / गिहं = घर के अन्दर / गिहमुहं = घर की देहली। गिहदुवार = घर का दरवाजा। गिहंगणं = घर का आंगन / गिहवच्छ पुरोहडं = घर की देहली के बाद सामने स्थित स्थान / निशीथ सूत्र में भी इसी तरह का पाठ मिलता। बल्कि वहां इसके अतिरिक्त पाठ भी है-"..."पणियसालसि वा, पणिगिहंसि वा, परिआयगिहंसि वा, परिआयसालसि वा, कुवियसालसि वा, कुवियगिहंसि वा, गोणसालासु वा गोणगिहेसु वा...।' इसका अर्थ स्पष्ट है। ‘णविआयतणेसु' इत्यादि पदों के अर्थ-दि आयतणेसु = नद्यायतन-तीर्थस्थान, जहां लोग पुण्यार्थ स्नानादिक करते हैं पंकायतणेसु - जहाँ पंकिलप्रदेश में लोग धर्म-पुण्य की इच्छा से लोटने आदि की क्रिया करते हैं / भोपायतणेसु =जो जलप्रवाह या तालाब के जल में प्रवेश का स्थान पूज्य माना जाता है, उनमें / सेयणपथे = जल-सिंचाई का मार्ग-नहर या नाली में / निशीथ चूर्णि में भी इस प्रकार का पाठ मिलता है / वच्चं पत्ते, फूल, फल आदि वृक्ष से गिरने पर जहाँ 1. (क) 'आगंतारेसु वा आरामामारेसु वा 4 उज्जाणंसि वा, णिज्जाणंसि वा उज्जाणगिहंसि वा उज्जाणसालसि वा, णिज्जाणगिहंसि वा णिज्जाथसालंसि वा / उच्चारपासवणं परिवेति...।' ___ --निशीथ उ०१५ आ० चूणि पृ० 234 (ख) उज्जाणं जत्थ उज्जाणियाए गम्मति, णिज्जाणं जत्थ सत्थो आवासेति जंवा ईसिणगरस्स उवकंठं ठियं तं उज्जाण / गगरणिग्गमे वा जं ठिय तं णिज्जाणं / --निशीथ चूणि उ०८, पृ०४३१, 434 -आचा० चू० 234 (ग) चरिया अंतो पगारस्स अट्टहत्या, दार-गोपुर-पामारा, तत्थ छड्डणे पंतावणादी। __-~आचा० चूणि मू० पा० टि० पृ० 235 2. एतदनुसारेण चूर्णिकृता सम्मतोऽत्र भूयान् सूत्रपाठो नेदानोमुपलभ्यते, इति ध्येयम् / ' .-आचा० मूल पाठ टिप्पणी सहित जम्बूविजय सम्पादित पृ० 235 3. तुलना, निशीथ सूत्र उ०१५, पृ०५५६ सू०६८-७४ / उ०८ में भी देखें "जे भिक्ख गिहसि वा गिहमुहंसि वा मिहदुवारिमंसि वा गिहेलूयंसि वा गिहंगणंसि वा गिहवच्च सि वा उच्चारं पासवणं वा परिट्रवेति। -निशीथ उ०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org