________________ नवमं अज्झयणं 'मिसीहिया' सत्तिक्कयं निषोधिका : नवम अध्ययन : द्वितीय सप्तिका निषोधिका-विवेक 641. से भिक्खू वा 2 अभिकखति' णिसोहियं गमणाए / से [ज्ज] पुण णिसोहियं जाणेज्जा सअंडं सपाणं जाव मक्कडासंताणय, तहप्पगारं णिसीहियं अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते णो चेतिस्सामि। 642. से भिक्खू वा 2 अभिकखति णिसीहियं गमणाए, से ज्जं पुण निसीहियं जाणेज्जा अप्पपाणं अप्पबीयं जाव मक्कडासंताणयं तहप्पगारं णिसोहियं फासुयं एसणिज्जं लाभे संते चेतिस्सामि। एवं सेज्जागमेण तव्वं जाव उदयपसूयाणि ति। 641. जो साधु या साध्वी प्रासुक-निर्दोष स्वाध्यायभूमि में जाना चाहे, वह यदि ऐसी स्वाध्यायभूमि (निषीधिका) को जाने, जो अंडों, जीव जन्तुओं यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हो तो उस प्रकार की निषीधिका को अप्रासुक एवं अनेषणीय समझ कर मिलने पर कहे कि में इसका उपयोग नहीं करूंगा। 642. जो साधु या साध्वी प्रासुक-निर्दोष स्वाध्यायभूमि में जाना चाहे, वह यदि ऐसी स्वाध्यायभूमि को जाने, जो अंडों, प्राणियों, बीजों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त न हो, तो उस प्रकार की निषीधिका को प्रासुक एवं एषणीय समझ कर प्राप्त होने पर कहे कि मैं इसका उपयोग करूंगा। निषीधिका के सम्बन्ध में यहां से लेकर उदक-प्रसूत कंदादि तक का समग्र वर्णन शय्या (द्वितीय) अध्ययन के अनुसार जान लेना चाहिए / विवेचन-निषोधिका कैसो न हो, कैसी हो?-प्रस्तुत सूत्र द्वय में निषाधिका से सम्बन्धित 1. इसके बदले पाठान्तर हैं--'खसि', 'कखेज्ज' 2. "णिसोहियं गमणाए' के बदले कहीं-कहीं पाठ है-"णिसीहियं फासुयं गमणाए" अर्थात्-प्रासुक निषीधिका प्राप्त करने के लिए। 3. 'गमणाए' के बदले पाठान्तर है- 'उवाच्छित्तए' / अर्थ होता है-निकट जाना या प्राप्त करना। 4. निषोधिका में गमन करने का उद्देश्य वृत्तिकार के शब्दों में-'स भावभिक्षुर्यदि वसतेरुपहताया अन्यत्र निषीथिका स्वाध्यायभूमि गन्तुमभिकांक्षेत्...' वह भावभिक्षु वसति दूषित होने से यदि अन्यत्र निषीधिका में जाना चाहता है......। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org